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मृत्यु का सत्य - एक भ्रम

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**मृत्यु एक भ्रम है** मृत्यु एक ऐसा विषय है जो सदियों से मानवता के मन में गहन विचार और चिंतन का विषय रहा है। जब हम "मृत्यु एक भ्रम है" कहते हैं, तो इसका अर्थ यह है कि मृत्यु मात्र एक शारीरिक अवस्था का अंत है, न कि चेतना या अस्तित्व का। इस दृष्टिकोण के पीछे कई दार्शनिक, धार्मिक और वैज्ञानिक विचारधाराएँ हैं, जो इस अवधारणा को समर्थन देती हैं। ### 1. दार्शनिक दृष्टिकोण भारतीय दर्शन में, विशेषकर वेदांत और अद्वैत वेदांत में, आत्मा को अजर-अमर माना गया है। उपनिषदों में कहा गया है कि आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है। यह शाश्वत, अजर, अमर और अविनाशी है। मृत्यु केवल शरीर का अंत है, आत्मा का नहीं। शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत में कहा है कि आत्मा ही वास्तविक सत्य है, बाकी सब माया (भ्रम) है। ### 2. धार्मिक दृष्टिकोण हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, और सिख धर्म जैसे धर्मों में पुनर्जन्म की अवधारणा महत्वपूर्ण है। इन धर्मों के अनुसार, आत्मा का अस्तित्व एक शरीर से दूसरे शरीर में यात्रा करता है। मृत्यु केवल एक अवस्था का अंत है, जबकि आत्मा का अस्तित्व निरंतर रहता है। इस प्रकार, मृत्यु ...

मानव,आत्मा, परमात्मा

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जीवन क्या हैं? क्यों है? कैसा है? मैं कौन हूं?क्या यह सब जानने वाला मैं हूँ?पर यह जानने वाला कैसे जाना जा सकता है?इस सँसार में सब कुछ मन के कारण अनुभव होता है।पर मन के आधार को मन द्वारा नहीं जाना जा सकता। पर यह समझ सकते हैं कि एक आधार है मन का।आधार से ही सब कुछ प्रकट हो रहा है,अनुभव होता है और इसका कोई अर्थ नहीं है।अर्थात यह सब माया है,भ्रम है।उसे ध्यान देना या ऊर्जा देना भी व्यक्ति को उसी माया  में उलझा कर रखता है। तो फिर क्या करें?कुछ नहीं करें बस सजग रहें और सब कुछ होते हुए देखें जानें। देखें पर नहीं देखें,सुनें पर नहीं सुनें, स्वाद लें पर आसक्त न हों।सब कुछ होते हुए ऐसा जानें कि अनंत नाटक चल रहा है ।प्रतिक्रिया, निर्णय व दोषारोपण से बचें,यह मानव को माया में डूबा देते हैं। ईश्वर हमारे साथ हर समय हैं। ईश्वर की कृपा के अनुभव में सदा रहें। सत्य,प्रेम,आनंद,साहस,सजगता आदि सदगुणों की अभिव्यकि करते रहें। सबको क्षमा करें। धन्यवाद

नव ग्रह पूजन के लाभ

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नवग्रह पूजन के लाभ नवग्रह पूजन का महत्व वैदिक ज्योतिष और आध्यात्मिक परंपराओं में बहुत अधिक है। नवग्रह पूजन से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और ग्रहों के अशुभ प्रभावों को शांत किया जा सकता है। हर ग्रह का एक विशेष प्रभाव होता है, और उनकी शांति के लिए पूजन करने से अनेक लाभ मिलते हैं। --- नवग्रह पूजन से मिलने वाले लाभ 1. ग्रहों के अशुभ प्रभावों की शांति यदि कुंडली में कोई ग्रह कमजोर या अशुभ स्थिति में हो, तो नवग्रह पूजन से उसका प्रभाव कम होता है। विशेष रूप से शनि, राहु, और केतु जैसे ग्रहों के दोष से मुक्ति मिलती है। यह राहु-केतु की महादशा और शनि की साढ़ेसाती जैसे समय में विशेष रूप से सहायक है। 2. जीवन में बाधाओं का समाधान जिन व्यक्तियों को जीवन में बार-बार समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हो, उनके लिए यह पूजन अत्यंत लाभकारी है। यह आर्थिक, स्वास्थ्य, पारिवारिक और करियर से जुड़ी समस्याओं का समाधान करता है। 3. स्वास्थ्य में सुधार यदि किसी ग्रह के दोष के कारण स्वास्थ्य समस्याएँ हो रही हों, तो नवग्रह पूजन से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। सूर्य और चंद्रमा के...

जीवन के धक्के

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जीवन को अक्सर एक शिक्षक के रूप में देखा जाता है, जो हर कदम पर हमें नई सीख देता है। यह सीखें न तो किसी पाठ्यपुस्तक में मिलती हैं और न ही कोई दूसरा व्यक्ति हमें सिखा सकता है। जीवन अपनी कठिनाइयों, संघर्षों और अनुभवों के माध्यम से हमें धक्के मार कर सिखाता है, क्योंकि यही वह तरीका है जिससे इंसान असली ज्ञान प्राप्त करता है। जीवन के धक्कों का महत्व: 1. वास्तविकता का सामना: जब तक इंसान को धक्के नहीं लगते, वह अक्सर अपनी कल्पनाओं और भ्रम में जीता है। जीवन के कठिन अनुभव उसे वास्तविकता से रूबरू कराते हैं। उदाहरण के लिए, असफलता या धोखा खाने के बाद ही इंसान समझ पाता है कि किन बातों पर भरोसा करना चाहिए और किन पर नहीं। 2. स्वयं की क्षमता का बोध: धक्के खाने से व्यक्ति को अपनी कमजोरियों और क्षमताओं का अंदाजा होता है। जब जीवन हमें गिराता है, तब ही हमें यह समझ में आता है कि हमारे अंदर उठने की कितनी ताकत है। 3. परिपक्वता: जो व्यक्ति धक्के खा कर उठ खड़ा होता है, वह परिपक्व और समझदार बनता है। जीवन के अनुभव उसे केवल मजबूत ही नहीं बनाते, बल्कि उसकी सोच को गहराई भी देते हैं। सीखने की प्रक्रिया: धक्के तब तक अपना...

नेत्र ज्योति

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*नेत्रघूर्णन, अनुलोम-विलोम प्राणासनः– सिद्वासन* अथवा वज्रासन में बैठकर नेत्रों द्वारा सर्वप्रथम भ्रूमध्य / नासाग्र अथवा ठीक सामने देखते हैं फिर आँखों को बाँयी और घुमाकर श्वास लेते हैं। फिर आँखों को दाँयी और घुमाकर श्वास छोड़ देते हैं फिर उसी ओर से श्वास लेकर आँखों को बाँयी और घुमाकर श्वास छोड़ते हैं, उसी ओर से श्वास लेकर आँखों को दाँयी और घुमाकर श्वास छोड़ते हैं। इस अभ्यास में एकान्तर क्रम से श्वास बाँये और दाँये नासा रन्ध्र से प्रविष्ट और निर्गत होता है। यह अनुलोम-विलोम प्राणायाम की सर्वोत्कृष्ट और सूक्ष्मतम विधि है। इसके अभ्यास से मात्र नेत्रघूर्णन (eye movement) से इडा और पिंगला स्वर परिवर्तित किया जा सकता है। अंत में हाथों की हथेलियों को अच्छी तरह आपस में रगड़कर, इस तरह आँखों पर रखते हैं कि अंगूठे के नीचे का शुक्रवलय का भाग (thener eminence) नेत्रों के ऊपर ठीक से व्यवस्थित हो जाये। जब ऊष्ण हथेलियों का तापमान सामान्य हो जाये तो हथेलियों को नेत्रों से हटा लेना चाहिए। यह प्रक्रिया तीन बार अवश्य करनी चाहिए क्योंकि नेत्र प्रकाश (आलोचक पित्त) स्रोत हैं इनसे निकलने वाली किरणों...

सत्य स्वरूप

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*मानव जीवन का वास्तविक उद्देश्य स्वयं के सत्य स्वरूप का बोध है।जाग्रत अवस्था में भी हम बाहरी दृश्यों में उलझे रहते हैं, जिससे हमें लगता है कि हम जागरूक हैं, जबकि हम स्वयं के प्रति सचेत नहीं होते। यह जागरूकता केवल बाहरी जगत की नहीं, बल्कि आत्मिक अनुभूति की होनी चाहिए। दृश्य और द्रष्टा के द्वैत से परे जाकर ही सच्चे अर्थों में जागरण संभव है। जब हम इस द्वैत से मुक्त होकर अद्वैत का अनुभव करते हैं, तब ही वास्तविक जागरूकता का जन्म होता है। बाहरी दृश्यों ने हमें स्वयं से दूर कर दिया है, और हम उसी जगत को सत्य मान बैठे हैं, जो हमारे अंतर्मुखी सत्य का प्रतिबिंब मात्र है। इस माया के प्रभाव से मुक्त होकर अपने अंदर छिपे सत्य को पहचानना ही जीवन का उद्देश्य है।जब हम सत्य को पहचान लेते हैं, उसी क्षण माया के प्रभाव से मुक्त हो जाते हैं।माया अर्थात जो है ही नहीं। *ॐ आनन्दाय नमः।*

Divine Quotes

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*Divine Quotes* 1.सुरक्षित सुनहरी गेंद में सुरक्षा के लिए रेकी को धन्यवाद।. 2.हर नकारात्मक या सकारात्मक विचार को दृष्टा भाव से देखें।कोई भी विचार आपका नहीं है और आप विचार भी नहीं हो। 3.भाव रहे कि ईश्वर सदैव पूर्ण स्वास्थ्य की अभिव्यक्ति करता है। 4.सब कुछ ईश्वरमय ही है। 5.सत्य खो नहीं सकता, माया मिल नहीं सकती। 6.अपनी आधारभूत ईश्वरीय शक्ति को याद रखे और अपने सत्य अनुभव की अभिव्यक्ति करें। 7.निरंतर क्षमा व कृतज्ञता प्रसन्नता की चाबी है।अपनी व दूसरो की गलती को क्षमा करे क्योकि कोई दूसरा है ही नहीं।सदा कृतज्ञता के भाव में रहें। 8.बिना शर्त प्रेम का होशपूर्वक, सजगता से प्रयत्न करे बिना किसी अपवाद आप सभी को बेशर्त प्रेम दें। 9.किसी की किसी से तुलना नहीं, ठप्पा नहीं, चिपकी नहीं।क्योंकि सब ही ईश्वर की रचना है।ईश्वर की अनंत कृपाओं को स्मरण करते रहें।नाम,रूप,आकार से परे अपनी समझ,दृष्टि अनंत, अदृश्य,अगम,अगोचर, सर्वव्यापी पर रखें।