आत्मनिष्ठ बने
आत्मनिष्ठ होना क्या होता है? आत्मनिष्ठ होने का अर्थ है अपने स्वयं के अनुभव, विचार, और सत्य की खोज में केंद्रित रहना। इसका तात्पर्य बाहरी प्रभावों, समाज की मान्यताओं या अन्य लोगों की अपेक्षाओं से प्रभावित हुए बिना अपनी स्वयं की आंतरिक अनुभूति और समझ के आधार पर जीवन जीना है। यह आत्मसाक्षात्कार की ओर बढ़ने का एक चरण भी हो सकता है, जहाँ व्यक्ति बाहरी सत्य के बजाय अपने भीतर के सत्य को पहचानने और अनुभव करने का प्रयास करता है। आत्मनिष्ठ व्यक्ति अपने विचारों, भावनाओं और क्रियाओं के प्रति सजग होता है और उन्हें बाहरी मानकों से नहीं, बल्कि अपनी आंतरिक बुद्धि, आत्म-निरीक्षण और अनुभव के आधार पर परखता है। ध्यान और आत्म-निरीक्षण की साधना आत्मनिष्ठ बनने में सहायक होती है, क्योंकि इससे व्यक्ति अपने मन, विचारों और वास्तविक स्वरूप को अधिक गहराई से समझ सकता है। आत्मनिष्ठ कैसे बनें? आत्मनिष्ठ होने के लिए व्यक्ति को अपने भीतर की गहराइयों में उतरना होता है और बाहरी प्रभावों से स्वतंत्र होकर स्वयं को पहचानना होता है। यह एक सतत अभ्यास है जिसमें ध्यान, आत्म-निरीक्षण और आंतरिक सजगता की आवश्यकता होती ...