मैं ही सही हूँ?
"मैं ही सही हूँ" — यह भावना जब दृढ़ आत्मविश्वास के स्थान पर अहंकार और अतिविश्वास में बदल जाती है, तो यह मनुष्य के लिए कई प्रकार की हानियाँ लेकर आती है। आइए इसे विस्तार से समझें: 🌑 1. आत्मविकास में बाधा जब कोई यह मान लेता है कि "मैं ही सही हूँ", तो वह सीखना बंद कर देता है। ऐसा व्यक्ति आलोचना, सुझाव या सुधार को अस्वीकार करता है — और यहीं से आत्मविकास रुक जाता है। > उदाहरण: एक शिक्षक यदि यह माने कि उसे सब आता है, तो वह छात्रों से सीखने की संभावना खो देता है। 🌪 2. संबंधों में दरार यह प्रवृत्ति संवाद को दबा देती है। जब कोई सदैव अपनी बात को ही अंतिम मानता है, तो सामने वाला अपमानित महसूस करता है। इससे रिश्तों में विश्वास कम होता है। > परिणाम: परिवार, मित्र या कार्यस्थल पर विवाद, दूरी, और मनमुटाव। 🔥 3. अहंकार का विस्तार "मैं ही सही हूँ" धीरे-धीरे "दूसरे सब गलत हैं" में बदल जाता है। यह दृष्टिकोण व्यक्ति को कठोर, आलोचनात्मक और दूसरों को नीचा दिखाने वाला बना देता है। > नतीजा: अकेलापन, मानसिक तनाव और सामाजिक अलगाव। 🌊 4. निर्णयों में ...