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Showing posts from 2025

प्राप्त ईश्वर की प्राप्ति

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प्राप्त ईश्वर की प्राप्ति     ईश्वर की प्राप्ति दरअसल कोई बाहरी प्राप्ति नहीं है, क्योंकि जैसा आपने कहा — ईश्वर प्राप्त ही है। इसका अर्थ है कि हमें बाहर कहीं ईश्वर को खोजना नहीं है, बल्कि अपने भीतर अनुभव करना है। 👉 इसे समझने के लिए कुछ बिंदु देखिए: 1. अज्ञान का हटना ही प्राप्ति है जैसे सूर्य हमेशा आकाश में है, पर बादल ढक देते हैं। सूर्य को लाना नहीं पड़ता, केवल बादल हटाने होते हैं। उसी प्रकार ईश्वर की प्राप्ति का अर्थ है अज्ञान, अहंकार, और माया के बादलों को हटाना। 2. मन की शांति में ईश्वर का अनुभव जब मन इच्छाओं, भय और द्वेष से शांत हो जाता है, तब अंतर की शुद्ध आभा प्रकट होती है। यह आभा ही ईश्वर-प्राप्ति कहलाती है। 3. कर्म से नहीं, भाव से अनुभव बाहरी कर्म (पूजा-पाठ, तीर्थ, अनुष्ठान) साधन हैं, परंतु प्राप्ति भीतर के समर्पण, प्रेम और आत्मबोध से होती है। जितना गहरा भाव “मैं ही वह हूँ” (अहं ब्रह्मास्मि) बैठता है, उतना ईश्वर का भाव स्पष्ट अनुभव होता है। 4. स्वयं को जानना ही ईश्वर को पाना है। उपनिषद कहते हैं: “तत्वमसि” – तू वही है। जब हम “कर्तापन” और “अलगाव” को छोड़कर आत्मा को ...

अभाव की सोच से मुक्ति

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अभाव की मानसिकता (Scarcity Consciousness) अभाव की मानसिकता वह गहरी जमी हुई सोच है जिसमें हमें हमेशा यह लगता है कि कभी कुछ पर्याप्त नहीं है —चाहे वह पैसा हो, समय हो, प्यार हो, सम्मान हो, अच्छा काम हो या जीवन में अवसर। यह सोच हमें यह विश्वास दिलाती है कि यदि किसी और को सफलता मिल रही है तो उसका अर्थ है कि हम हार रहे हैं। इसी कारण हम कई बार ऐसे रिश्तों या नौकरियों में फँसे रहते हैं जो हमें संतुष्टि नहीं देते—सिर्फ इसलिए क्योंकि हमें डर लगता है कि शायद इससे बेहतर विकल्प कहीं नहीं है। अधिकतर समय हमारा मस्तिष्क और उसकी न्यूरल पाथवे (Neural Pathways) अभाव की सोच से बने रहते हैं। बचपन से हमें यह मान्यताएँ सिखाई जाती हैं—“कभी पर्याप्त नहीं होता”, “पैसे के लिए संघर्ष करना पड़ता है”, “जीवन आसान नहीं है”। यह सोच हर निर्णय को एक बड़ा जुआ बना देती है। छोटी-सी गलती का भी डर बना रहता है क्योंकि भीतर से आवाज आती है—“अगर यह गलत हो गया तो मेरे पास और मौका नहीं होगा।” परिणामस्वरूप, हम बेहतर भविष्य की कल्पना ही नहीं कर पाते और अभाव के चक्र में फँस जाते हैं। 👉 जागरूक रहें जब भी आपके मन में पैसे, रिश्...

कबूतर की बीट और आप

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कबूतर की बीट (मल) से कई प्रकार की हानियाँ हो सकती हैं, खासकर अगर वह लंबे समय तक घर, खिड़कियों, छत, बालकनी या अनाज के पास जमा रहती है। मुख्य हानियाँ इस प्रकार हैं – 1. स्वास्थ्य संबंधी हानियाँ फंगल संक्रमण (Histoplasmosis, Cryptococcosis): कबूतर की बीट में पाए जाने वाले कवक (fungus) से फेफड़ों में संक्रमण हो सकता है। बैक्टीरियल संक्रमण (Psittacosis): इससे बुखार, खाँसी, सांस लेने में तकलीफ़ और कमजोरी हो सकती है। एलर्जी और अस्थमा: बीट की धूल हवा में मिलकर श्वसन तंत्र को प्रभावित करती है, जिससे एलर्जी और अस्थमा के रोगियों को परेशानी होती है। परजीवी (Parasites): इसमें कीड़े और परजीवी हो सकते हैं, जो इंसानों और पालतू जानवरों में रोग फैला सकते हैं। 2. पर्यावरण और घर की हानि दीवारों और छत को खराब करना: बीट अम्लीय (acidic) होती है, जो इमारत की पेंट और पत्थर/सीमेंट को खराब कर देती है। गंध और गंदगी: जमा हुई बीट से बदबू और अस्वच्छ वातावरण बनता है। कीट आकर्षित करना: बीट मक्खियों और कीड़ों को आकर्षित करती है। 3. खाद्य और भंडारण पर असर अगर बीट अनाज या खाने-पीने की चीज़ों के पास गिरे तो खाद्य विषाक्तत...

मृत्यु का सत्य - एक भ्रम

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**मृत्यु एक भ्रम है** मृत्यु एक ऐसा विषय है जो सदियों से मानवता के मन में गहन विचार और चिंतन का विषय रहा है। जब हम "मृत्यु एक भ्रम है" कहते हैं, तो इसका अर्थ यह है कि मृत्यु मात्र एक शारीरिक अवस्था का अंत है, न कि चेतना या अस्तित्व का। इस दृष्टिकोण के पीछे कई दार्शनिक, धार्मिक और वैज्ञानिक विचारधाराएँ हैं, जो इस अवधारणा को समर्थन देती हैं। ### 1. दार्शनिक दृष्टिकोण भारतीय दर्शन में, विशेषकर वेदांत और अद्वैत वेदांत में, आत्मा को अजर-अमर माना गया है। उपनिषदों में कहा गया है कि आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है। यह शाश्वत, अजर, अमर और अविनाशी है। मृत्यु केवल शरीर का अंत है, आत्मा का नहीं। शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत में कहा है कि आत्मा ही वास्तविक सत्य है, बाकी सब माया (भ्रम) है। ### 2. धार्मिक दृष्टिकोण हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, और सिख धर्म जैसे धर्मों में पुनर्जन्म की अवधारणा महत्वपूर्ण है। इन धर्मों के अनुसार, आत्मा का अस्तित्व एक शरीर से दूसरे शरीर में यात्रा करता है। मृत्यु केवल एक अवस्था का अंत है, जबकि आत्मा का अस्तित्व निरंतर रहता है। इस प्रकार, मृत्यु ...

निर्विशेष परमात्मा

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क्या परमात्मा निर्विशेष हैं? निर्विशेष का अर्थ है—जिसमें कोई विशेषता, गुण, रूप, आकार या भेदभाव न हो। जब हम परमात्मा को निर्विशेष कहते हैं, तो इसका तात्पर्य यह होता है कि परमात्मा किसी भी सीमित या साकार विशेषता से परे हैं। इसे निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है: --- 1. अद्वैत वेदांत और निर्विशेष ब्रह्म अद्वैत वेदांत में शंकराचार्य ने कहा है कि परमात्मा (ब्रह्म) "निर्विशेष, निराकार, अचल और शुद्ध चैतन्य मात्र" हैं। इसका अर्थ यह है कि वे किसी भी गुण या विशेषता से परे हैं और केवल एक अखंड, अविभाज्य चेतना के रूप में विद्यमान हैं। शास्त्र प्रमाण: > "नेति, नेति" (बृहदारण्यक उपनिषद 2.3.6) – परमात्मा को किसी भी विशेष गुण से परिभाषित नहीं किया जा सकता, इसलिए उपनिषद कहते हैं, "यह नहीं, यह नहीं।" --- 2. परमात्मा रूप, रंग और आकार से परे हैं हम जो भी देख या अनुभव कर सकते हैं, वह सीमित होता है—चाहे वह कोई वस्तु हो, व्यक्ति हो, विचार हो या ऊर्जा हो। परमात्मा किसी भी विशेष रूप में सीमित नहीं होते क्योंकि यदि वे किसी विशेष रूप में होते, तो वे सीमित हो जाते। शंकराचार्य क...

आक्रामकता कारण और निवारण

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आक्रामकता: कारण, प्रभाव और समाधान --- प्रस्तावना आक्रामकता (Aggression) एक सामान्य मानवीय भावना है, जो कभी-कभी हमारे व्यवहार में उग्रता, क्रोध या हिंसा के रूप में प्रकट होती है। यह भावना कभी हमारी रक्षा के लिए उपयोगी हो सकती है, तो कभी हमारे संबंधों और समाज में विघटन का कारण बन जाती है। आज के तनावपूर्ण जीवन में आक्रामकता का स्तर दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है, इसलिए इसके मूल कारणों, प्रभावों और समाधान को समझना आवश्यक है। --- आक्रामकता के कारण 1. मानसिक तनाव और अवसाद – जब व्यक्ति मानसिक दबाव में होता है, तो वह छोटी-छोटी बातों पर चिड़चिड़ा और उग्र हो जाता है। 2. अधूरी इच्छाएँ और असंतोष – जब व्यक्ति की इच्छाएँ पूरी नहीं होतीं या वह लगातार असफलता का सामना करता है, तो उसमें निराशा से उपजी आक्रामकता जन्म लेती है। 3. बाल्यकाल के अनुभव – हिंसा, अपमान या अस्वीकृति से भरा बचपन अक्सर वयस्कता में आक्रामक प्रवृत्ति का आधार बनता है। 4. सामाजिक और पारिवारिक वातावरण – जहां संवाद की जगह आदेश और नियंत्रण होता है, वहां व्यक्तित्व में आक्रामकता जन्म ले सकती है। 5. नशा और मानसिक रोग – शराब, ड्रग्स य...

गोत्र का महत्व क्या है?

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गोत्र का महत्व क्या है?  *आपका सही-सही पिन कोड* *क्या आप अपने गोत्र की असली शक्ति को जानते हैं?* * 🧵यह कोई परंपरा नहीं है। कोई अंधविश्वास नहीं है। यह आपका प्राचीन कोड है।* यह पूरा लेख पढ़िए — मानो आपका अतीत इसी पर टिका हो। 1. गोत्र आपका उपनाम नहीं है। यह आपकी आध्यात्मिक डीएनए है। पता है सबसे अजीब क्या है? अधिकतर लोग जानते ही नहीं कि वे किस गोत्र से हैं। हमें लगता है कि यह बस एक लाइन है जो पंडितजी पूजा में कहते हैं। लेकिन यह सिर्फ इतना नहीं है। आपका गोत्र दर्शाता है — आप किस ऋषि की मानसिक ऊर्जा से जुड़े हुए हैं। खून से नहीं, बल्कि विचार, ऊर्जा, तरंग और ज्ञान से। हर हिंदू आध्यात्मिक रूप से एक ऋषि से जुड़ा होता है। वो ऋषि आपके बौद्धिक पूर्वज हैं। उनकी सोच, ऊर्जा, और चेतना आज भी आपमें बह रही है। 2. गोत्र का अर्थ जाति नहीं होता। आज लोग इसे गड़बड़ा देते हैं। गोत्र ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र नहीं दर्शाता। यह जातियों से पहले, उपनामों से पहले, राजाओं से भी पहले अस्तित्व में था। यह सबसे प्राचीन पहचान का तरीका था — ज्ञान पर आधारित, शक्ति पर नहीं। हर किसी का गोत्र होता था।...

जिम्मेदारी का महत्व और लाभ

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जिम्मेदारी का अधूरा अहसास और समय की प्राथमिकता — जीवन को पूर्ण आनंद से जीने की राह बहुत से लोग जीवन में जिम्मेदारियों को पूरी तरह नहीं अपनाते। वे या तो टाल-मटोल करते हैं, या उन्हें लगता है कि समय की कोई विशेष प्राथमिकता तय करना ज़रूरी नहीं है। नतीजा यह होता है कि उनके जीवन में अधूरापन, असंतोष और अवसरों की कमी बनी रहती है। यह स्थिति अक्सर हमारी पुरानी मान्यताओं, सीमित सोच या “मैं जैसा हूं, ठीक हूं” वाले दृष्टिकोण से पैदा होती है। लेकिन अगर हम अपनी मानसिक सीमाओं से बाहर निकलें, तो न केवल अधिक जिम्मेदार बन सकते हैं, बल्कि समय का मूल्य समझकर जीवन का वास्तविक आनंद भी ले सकते हैं। --- 1. जिम्मेदारी का सही अर्थ समझना जिम्मेदारी केवल काम निपटाने या दूसरों को जवाब देने का नाम नहीं है। यह तीन स्तरों पर काम करती है: स्वयं के प्रति जिम्मेदारी – अपने स्वास्थ्य, भावनाओं और लक्ष्यों का ध्यान रखना। दूसरों के प्रति जिम्मेदारी – परिवार, समाज और कार्यस्थल में भरोसेमंद होना। समय के प्रति जिम्मेदारी – यह मानना कि हर पल दोबारा नहीं आएगा, इसलिए उसका सदुपयोग करना। --- 2. समय की प्राथमिकता क्यों जर...

अपान वायु मुद्रा के लाभ

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अपान वायु मुद्रा (Apana Vayu Mudra) को ह्रदय मुद्रा (Heart Mudra) भी कहा जाता है। यह मुद्रा ह्रदय, पाचन, और निचले शरीर की ऊर्जा को संतुलित करने के लिए बहुत उपयोगी मानी जाती है। विशेष रूप से यह हृदय रोगों, गैस, कब्ज, और अपचन में लाभकारी होती है। ✋ अपान वायु मुद्रा कैसे करें? आरामदायक स्थिति में बैठ जाएँ (जैसे पद्मासन, सुखासन या कुर्सी पर पीठ सीधी रखकर)। दोनों हाथों को घुटनों पर रखें, हथेलियाँ ऊपर की ओर। अब प्रत्येक हाथ की: मध्यमा (Middle finger) और अनामिका (Ring finger) को अंगूठे (Thumb) के नीचे मोड़ें। अंगूठा इन दोनों उंगलियों को हल्के से दबाए। तर्जनी (Index finger) को मोड़कर अंगूठे के मूल भाग से स्पर्श कराएं। कनिष्ठा (Little finger) को सीधा रखें। यह मुद्रा कुछ इस प्रकार दिखेगी: तर्जनी - अंगूठे के मूल से स्पर्श मध्यमा + अनामिका - अंगूठे से दबाई गई कनिष्ठा - सीधी 🕒 कितनी देर करें? दिन में 2 से 3 बार , प्रत्येक बार 15 से 20 मिनट तक करें। हृदय के रोगी इसे दिन में 3-4 बार कर सकते हैं। 🧘‍♂️ लाभ: हृदय की गति को संतुलित करता है , हृदयाघात (Heart Attack) क...

जन्मदिन पर सकारात्मक उपाय करें

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अपने जन्मदिन पर अपने वजन के बराबर हरा चारा (या गुड़-चना) गाय माता को खिलाना** हिंदू परंपरा और गौ-सेवा से जुड़ा एक विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक कर्म** माना जाता है। इसका कोई सीधा वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है, लेकिन धार्मिक और ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार इसके कई लाभ बताए जाते हैं: --- लाभ और मान्यताएँ 1. पाप कर्मों का शमन यह कर्म जन्मदिन पर किए गए दान का श्रेष्ठ रूप माना जाता है। इससे पिछले जन्म और इस जन्म के कई पाप कर्मों का क्षय होता है। 2. ग्रह दोषों का शमन विशेषकर शनि, राहु, केतु और मंगल के दोष शांत करने के लिए यह उपाय बहुत प्रभावी माना गया है। जिन लोगों की कुंडली में ग्रह पीड़ा हो, उन्हें यह करने की सलाह दी जाती है। 3. आयु, स्वास्थ्य और समृद्धि जन्मदिन पर यह कार्य करने से आयु में वृद्धि, रोगों से सुरक्षा और मानसिक शांति मिलती है। घर में सुख-शांति और लक्ष्मी कृपा आती है। 4. गौ सेवा का पुण्य गौ माता को अन्न और चारा खिलाना स्वयं में बड़ा पुण्य है। जन्मदिन पर ऐसा करने से आपका जीवन गौ माता के आशीर्वाद से सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है। 5. अहंकार का त्याग और कृतज्ञता अपने वजन के बराबर चारा खि...

यातायात के नियम

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सड़क पर चलने के महत्वपूर्ण नियम (Rules on the Road in Hindi) – जो सभी के लिए सुरक्षा, अनुशासन और ट्रैफिक के सही प्रवाह के लिए आवश्यक हैं: --- 🚦 सभी सड़क उपयोगकर्ताओं के लिए सामान्य नियम ✅ सभी के लिए नियम 1. ट्रैफिक संकेतों का पालन करें – लाल बत्ती: रुकें, हरी बत्ती: चलें, पीली बत्ती: धीरे करें। 2. हमेशा बाईं ओर चलें – भारत में ड्राइविंग बाईं ओर होती है। 3. गति सीमा का पालन करें – स्कूल, अस्पताल और भीड़ वाले क्षेत्रों में धीमे चलें। 4. सीट बेल्ट पहनें – कार में ड्राइव करते समय अनिवार्य है। 5. शराब पीकर गाड़ी न चलाएं – यह गैरकानूनी और खतरनाक है। 6. मोबाइल का प्रयोग न करें – वाहन चलाते समय फोन पर बात करना या मैसेज करना बहुत खतरनाक है। --- 🛵 दोपहिया वाहन चालकों के लिए 1. हेलमेट पहनना अनिवार्य – चालक और पीछे बैठने वाले दोनों के लिए। 2. तीन लोग न बैठें – दोपहिया वाहन पर केवल दो व्यक्ति की अनुमति है। 3. इंडिकेटर और रियर व्यू मिरर का प्रयोग करें। --- 🚗 कार चालकों के लिए 1. लेन अनुशासन का पालन करें – लेन बदलते समय इंडिकेटर जरूर दें। 2. पैदल यात्रियों को प्राथमिकता दें – ज़ेब्रा क...

सकारात्मक विश्वास का जादू

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व्यक्ति के गलत विश्वास (False Beliefs or मिथ्या धारणाएँ) अक्सर उसके अनुभवों, समाज, शिक्षा, या डर पर आधारित होते हैं। ये विश्वास आत्म-विकास में बाधा बनते हैं और व्यक्ति को सीमित सोच में बाँध देते हैं। --- 🔻 सामान्य गलत विश्वास और उनके उदाहरण: 1. मैं पर्याप्त नहीं हूँ। → "मुझमें योग्यता नहीं है, मैं कभी सफल नहीं हो सकता।" 2. दूसरे लोग मुझे ही जज करते हैं। → "लोग क्या सोचेंगे, मैं वही करूंगा जो उन्हें पसंद आए।" 3. गलती करना असफलता है। → "एक बार फेल हो गया तो हमेशा के लिए खत्म।" 4. मुझे सबको खुश रखना चाहिए। → "अगर मैं 'ना' कहूँगा, तो लोग मुझे नापसंद करेंगे।" 5. मेरे बीते अनुभव मेरी पहचान हैं। → "जो हुआ था, वही मैं हूँ — मैं नहीं बदल सकता।" ✅ इन्हें दूर करने के उपाय: 1. स्व-जागरूकता (Self-Awareness): गलत विश्वासों को पहचानें और उन्हें लिखें। प्रश्न करें: क्या यह विश्वास तर्कसंगत है? क्या यह सबूतों पर आधारित है? 2. सकारात्मक पुष्टि (Affirmations): पुराने विश्वास की जगह नई धारणाएं डालें: "मैं योग्य हूँ।" "मे...

क्या लालच का कारण डर है?

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🌑 क्या लालच का मूल कारण डर होता है? "लालच" — यह शब्द सुनते ही मन में नकारात्मक भाव उत्पन्न होता है। हम इसे दोष मानते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि लालच की जड़ क्या होती है? अधिकतर आध्यात्मिक विचारधाराएँ और मनोविज्ञान एकमत हैं कि — लालच का मूल कारण डर (भय) है। --- 🔎 डर और लालच का संबंध लालच केवल भौतिक वस्तुओं तक सीमित नहीं होती — यह धन, प्रेम, सम्मान, रिश्ते, या ज्ञान की भी हो सकती है। लेकिन जब हम गहराई से देखें तो पाएंगे कि: > लालच वह मानसिक स्थिति है जहाँ व्यक्ति को यह भय होता है कि “मेरे पास पर्याप्त नहीं है।” यह डर व्यक्ति को मानसिक असुरक्षा में डाल देता है, और वह अधिक संग्रह करने की ओर प्रेरित होता है। --- 😨 डर के विभिन्न रूप जो लालच को जन्म देते हैं: 1. कमी का डर (Fear of Lack) व्यक्ति को यह भय रहता है कि कहीं उसके पास धन, भोजन, या संसाधन कम न पड़ जाएँ। यही सोच उसे अधिक संग्रह करने की ओर ले जाती है। 2. भविष्य का डर "अगर मैंने आज ज्यादा नहीं कमाया, तो कल क्या होगा?" यह सोच व्यक्ति को संतोष नहीं करने देती, और वह हर समय “थोड़ा और” चाहता है।...

डर और लालच

डर और लालच दोनों ही मनुष्य को मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से बाँधने वाले सबसे शक्तिशाली बंधन हैं। ये बंधन अदृश्य होते हैं, लेकिन जीवन की दिशा और निर्णयों पर गहरा प्रभाव डालते हैं। आइए समझते हैं कि ये कैसे व्यक्ति को बाँधते हैं: 🔒 1. डर (Fear) का बंधन: 🌫️ मन की स्वतंत्रता का हनन: डर व्यक्ति को अपने सच्चे विचार और भावनाओं को व्यक्त करने से रोकता है। वह यह सोचता है कि "लोग क्या कहेंगे", "अगर असफल हुआ तो?", जिससे उसकी आत्म-अभिव्यक्ति सीमित हो जाती है। ⛓️ सुरक्षा की आड़ में जकड़न: व्यक्ति अपनी "सुरक्षा" के लिए जोखिम लेने से डरता है। वह जाना-पहचाना दुख सह लेता है, लेकिन अज्ञात सुख की ओर कदम नहीं बढ़ाता। 😰 अतीत और भविष्य में उलझाव: डर व्यक्ति को वर्तमान में जीने नहीं देता — या तो वह अतीत की गलतियों से ग्रस्त रहता है या भविष्य की चिंता में। 🔗 2. लालच (Greed) का बंधन: 🔄 असीमित इच्छा की चक्रव्यूह: लालच कभी समाप्त नहीं होता। एक इच्छा पूरी होने पर दूसरी खड़ी हो जाती है। इससे व्यक्ति कभी सन्तुष्ट नहीं हो पाता। 🧲 बाहरी चीजों में फँसा रहना: लालच व्यक्ति को ...