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मैं ही सही हूँ?

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"मैं ही सही हूँ" — यह भावना जब दृढ़ आत्मविश्वास के स्थान पर अहंकार और अतिविश्वास में बदल जाती है, तो यह मनुष्य के लिए कई प्रकार की हानियाँ लेकर आती है। आइए इसे विस्तार से समझें: 🌑 1. आत्मविकास में बाधा जब कोई यह मान लेता है कि "मैं ही सही हूँ", तो वह सीखना बंद कर देता है। ऐसा व्यक्ति आलोचना, सुझाव या सुधार को अस्वीकार करता है — और यहीं से आत्मविकास रुक जाता है। > उदाहरण: एक शिक्षक यदि यह माने कि उसे सब आता है, तो वह छात्रों से सीखने की संभावना खो देता है। 🌪 2. संबंधों में दरार यह प्रवृत्ति संवाद को दबा देती है। जब कोई सदैव अपनी बात को ही अंतिम मानता है, तो सामने वाला अपमानित महसूस करता है। इससे रिश्तों में विश्वास कम होता है। > परिणाम: परिवार, मित्र या कार्यस्थल पर विवाद, दूरी, और मनमुटाव। 🔥 3. अहंकार का विस्तार "मैं ही सही हूँ" धीरे-धीरे "दूसरे सब गलत हैं" में बदल जाता है। यह दृष्टिकोण व्यक्ति को कठोर, आलोचनात्मक और दूसरों को नीचा दिखाने वाला बना देता है। > नतीजा: अकेलापन, मानसिक तनाव और सामाजिक अलगाव। 🌊 4. निर्णयों में ...

अच्छाई और बुराई

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सत्यमहेश भोपाल: Gurudev says: “You are not the mind. You are the Self.” But how do you experience that Self? ✨ Today at the Unicorn Club, discover Sahaj Samadhi Meditation — a personalized practice that gives you effortless access to deep rest, creativity, and your true identity. This isn’t just a session — it’s your Spiritual Aadhaar moment. Come discover the mantra that fits your soul like a fingerprint. 📍https://zoom.us/j/98467651875?pwd=y8oY1pnZI9CxRol3YpJWdjl02BDBG8.1 🕒 9am (Today) Just reply "YES" if you’re joining. Or type "AADHAAR" for last-minute access. Let this be the beginning of your identity upgrade. अच्छाई और बुराई का शाश्वत संघर्ष: एक आत्मचिंतन    संसार में जब से चेतना का प्रादुर्भाव हुआ है, तब से ही एक गहन और अदृश्य संघर्ष चला आ रहा है — अच्छाई और बुराई के बीच। यह संघर्ष केवल बाहरी दुनिया में नहीं, अपितु प्रत्येक मानव के अंतर्मन में भी निरंतर चलता रहता है। यह केवल धार्मिक ग्रंथों की कथा नहीं, बल्कि मानव जीवन की गूढ़ और अनुभवसिद्ध सच्चा...

🕊 आध्यात्मिक शांति पर एक गहन लेख 🕊

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"आध्यात्मिक शांति — आत्मा की मौन पुकार" परिचय आधुनिक जीवन की आपाधापी, तनाव, और निरंतर बढ़ती इच्छाओं की भीड़ में एक अनुभूति ऐसी है जिसकी खोज में हर मानव अनजाने में लगा रहता है — आध्यात्मिक शांति। यह वह अनुभव है जो शब्दों में नहीं, आत्मा की गहराई में उतरकर ही पाया जा सकता है। यह बाहरी परिस्थितियों से नहीं, बल्कि आंतरिक संतुलन, स्वीकार्यता और ईश्वर से एकात्मता से प्राप्त होती है। आध्यात्मिक शांति क्या है? आध्यात्मिक शांति वह स्थिति है जब मन, बुद्धि और आत्मा के बीच पूर्ण सामंजस्य होता है। यह कोई तात्कालिक भाव नहीं, बल्कि एक स्थितप्रज्ञ अवस्था है — जिसमें जीवन की हर परिस्थिति में व्यक्ति शांत, स्थिर और प्रसन्न रहता है। न सुख से फूलता है, न दुख से टूटता है। शांति की खोज: बाहर नहीं, भीतर अक्सर हम शांति को बाहर तलाशते हैं — सुंदर स्थलों पर जाकर, संगीत सुनकर, या ध्यान केंद्रों में बैठकर। ये साधन सहायक हो सकते हैं, परंतु शांति स्वयं हमारे भीतर विद्यमान है, ठीक वैसे ही जैसे समुद्र की गहराइयों में मौन होता है, चाहे सतह पर कितनी ही लहरें क्यों न हों। अंतर्मन की बाधाएँ शांति की...

राम जी

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आदि अंत कोउ जासु न पावा।  मति अनुमानि निगम अस गावा॥ बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।  कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥ आनन रहित सकल रस भोगी।  बिनु बानी बकता बड़ जोगी॥ तन बिनु परस नयन बिनु देखा।  ग्रहइ घ्रान बिनु बास असेषा॥ असि सब भाँति अलौकिक करनी।  महिमा जासु जाइ नहिं बरनी॥ जेहि इमि गावहिं बेद बुध जाहि धरहिं मुनि ध्यान। सोइ दसरथ सुत भगत हित कोसलपति भगवान ॥  जिनका आदि और अंत किसी ने नहीं (जान) पाया। वेदों ने अपनी बुद्धि से अनुमान करके इस प्रकार (नीचे लिखे अनुसार) गाया है-॥ वह (ब्रह्म) बिना ही पैर के चलता है, बिना ही कान के सुनता है, बिना ही हाथ के नाना प्रकार के काम करता है, बिना मुँह (जिव्हा) के ही सारे (छहों) रसों का आनंद लेता है और बिना ही वाणी के बहुत योग्य वक्ता है॥ वह बिना ही शरीर (त्वचा) के स्पर्श करता है, बिना ही आँखों के देखता है और बिना ही नाक के सब गंधों को ग्रहण करता है (सूँघता है)। उस ब्रह्म की करनी सभी प्रकार से ऐसी अलौकिक है कि जिसकी महिमा कही नहीं जा सकती॥ जिसका वेद और पंडित इस प्रकार वर्णन करते हैं और मुनि जिसका ध्यान धरते हैं, वही दशरथनंदन, भक्तों के...

सत्य बोध

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प्रभु की सुरक्षा में सुरक्षित सुनहरी प्रकाश-पुंज की अनुभूति करें, और इस दिव्य संरक्षण के लिए गहराई से धन्यवाद करें। हर विचार—चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक—को केवल दृष्टा भाव से देखें। जानें कि कोई भी विचार आपका नहीं है, और आप स्वयं विचार नहीं हैं। यह भाव दृढ़ करें कि ईश्वर सदैव पूर्ण स्वास्थ्य की अभिव्यक्ति करता है — और आप उसी पूर्णता के प्रतीक हैं। सब कुछ ईश्वरमय है — हर अनुभव, हर रूप, हर क्षण उसी की लीला है। सत्य कभी खो नहीं सकता, और माया कभी वास्तव में मिल नहीं सकती। अपनी मूल ईश्वरीय शक्ति को स्मरण करें, और अपने सत्य अनुभव को सहजता से प्रकट होने दें। निरंतर क्षमा और कृतज्ञता ही स्थायी प्रसन्नता की चाबी है। अपनी और दूसरों की भूलों को क्षमा करें — क्योंकि वास्तव में ‘दूसरा’ कोई है ही नहीं। सदा कृतज्ञ रहें। बिना शर्त प्रेम का अभ्यास सजगता से करें। बिना किसी अपवाद के, सभी को बेशर्त प्रेम दें — यही सच्ची भक्ति है। न तुलना, न ठप्पा, न चिपकाव — क्योंकि प्रत्येक आत्मा ईश्वर की अनूठी रचना है। ईश्वर की अनंत कृपाओं का निरंतर स्मरण करें, और अपनी दृष्टि...

आत्मा और सत्य

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"दर्पण और प्रकाश" गाँव के किनारे एक संत एक छोटी सी कुटिया में निवास करते थे । उनका चेहरा शांत था,मन सहज शांत ,आँखों में गहराई और हृदय में प्रकाश। लोग उन्हें ज्ञानी कहते, पर वह स्वयं को बस एक दर्पण मानते थे। एक दिन एक युवा जिज्ञासु उसके पास आया — हृदय में प्रश्नों की ज्वाला और जीवन के अर्थ की प्यास। युवा बोला, “बाबा! मैं आत्मज्ञान चाहता हूँ। कृपया मार्गदर्शन दीजिए। मैंने ग्रंथ पढ़े, ध्यान किया, यात्राएँ कीं, फिर भी भीतर कुछ अधूरा है।” संत मुस्कुराए और बोले, “पुत्र, क्या तुम दर्पण में अपना चेहरा देख सकते हो, यदि वह धूल से ढका हो?” “नहीं बाबा, साफ़ करना पड़ेगा,” युवक ने उत्तर दिया। संत बोले, “ठीक वैसे ही आत्मा  हर हृदय में प्रकाशित है, कण कण में प्रकाशित है परंतु मन की धूल —कामनाएं ,इच्छाएँ, भय, ईर्ष्या, क्रोध की धूल — उसे ढक देती है। आत्मज्ञान कोई बाहरी उपलब्धि नहीं, बल्कि मन की सफाई है।” युवक ने पूछा, “तो मुझे क्या करना होगा?” संत ने धीरे से उत्तर दिया, “प्रतिदिन कुछ समय मौन में बैठो। अपने विचारों को देखो, उन्हें पकड़े बिना बहने दो। प्रेम से स्वयं को स्वीकारो। जब मन शांत होगा,...

ईश्वर ही है,तुम भी वही हो।

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*ईश्वर की सहज पहचान हो रही है* *– सत्य की अनुभूति में डूबी एक कविता* हर साँस में जैसे कोई सरगम बह रही है, मन के मौन में कोई धुन बज रही है। न मंदिर की घंटियों में, न ग्रंथों की पंक्तियों में, ईश्वर तो बस इस पल की सादगी में रह रहा है। न बाहरी खोज, न लंबी साधना का शोर, बस खुद से मिलने का एक परमशांति का क्षण। जब  स्वीकारा दुःख को भी वरदान समझ, तब भीतर एक मौन, ईश्वरीय गूंज बन गई सहज। न कोई प्रश्न अब, न उत्तर की तलाश है, बस जो कुछ है, वही तो परम प्रकाश है। ईश्वर अब कोई अलग नहीं, दूर नहीं, वह तो हर धड़कन में, हर क्षण में भर रही है। ईश्वर की सहज पहचान हो रही है, मैं है ही नहीं— एक परम ज्योति सी बह रही है। ईश्वर से भिन्न कुछ भी नहीं है, ईश्वर ही सत्य है, शेष सब भी  ईश्वर ही है। *सत्य महेश भोपाल*

Overthinking से बचने की विधि

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Overthinking (अत्यधिक विचार करना) एक मानसिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति बार-बार एक ही बात को सोचता रहता है, निर्णय नहीं ले पाता या भविष्य व भूतकाल की घटनाओं में उलझा रहता है। यह कई प्रकार की हो सकती है और इसके मानसिक व शारीरिक हानिकारक प्रभाव होते हैं। Overthinking के प्रमुख प्रकार 1. Rumination (पछतावा आधारित सोच): भूतकाल की घटनाओं पर बार-बार विचार करना – जैसे, "काश मैंने ऐसा नहीं किया होता।" 2. Worrying (चिंता आधारित सोच): भविष्य की कल्पनाओं में खो जाना – "अगर ऐसा हो गया तो क्या होगा?" 3. Decision Paralysis (निर्णयहीन सोच): विकल्पों में उलझ कर निर्णय न ले पाना – "यह सही है या वह?" 4. Self-Doubt (आत्म-संदेह): खुद पर विश्वास न करना – "क्या मैं यह कर सकता हूँ?" 5. Hypothetical Overthinking (काल्पनिक सोच): जो घटा ही नहीं, उस पर सोचना – "अगर वह ऐसा कह देता तो क्या होता?" Overthinking से होने वाली हानियाँ मानसिक तनाव (Stress) और चिंता (Anxiety) नींद की कमी (Insomnia) निर्णय लेने की क्षमता में गिरावट स्वास्थ्य समस्याएँ (जैसे Blood Pressure, सिर...

स्वाद नहीं ,स्वास्थ्य

स्वाद नहीं, स्वास्थ्य को दें प्राथमिकता – एक विचारशील लेख भूमिका आज के युग में जब स्वादिष्ट व्यंजनों की भरमार है, मनुष्य का झुकाव स्वाद की ओर स्वाभाविक हो गया है। चाहे वह तले-भुने पकवान हों, मीठी मिठाइयाँ हों या तीखे मसालेदार भोजन – जीभ की तृप्ति के लिए हम न जाने कितनी बार अपने शरीर के स्वास्थ्य से समझौता कर बैठते हैं। परंतु क्या यह क्षणिक स्वाद, हमारे दीर्घकालिक स्वास्थ्य से अधिक मूल्यवान है? यही प्रश्न हमें यह सोचने पर विवश करता है कि स्वाद से अधिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना क्यों आवश्यक है। स्वाद की आदत: एक मीठा धोखा स्वाद तात्कालिक संतोष देता है, परंतु इसके पीछे छिपा दीर्घकालिक नुकसान हम अकसर अनदेखा कर देते हैं। अधिक तेल, नमक, चीनी और मसाले न केवल हमारे पाचन तंत्र को नुकसान पहुँचाते हैं, बल्कि मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापा और हृदय रोगों जैसे गंभीर रोगों का कारण भी बनते हैं। प्रारंभ में ये लक्षण दिखते नहीं, पर धीरे-धीरे शरीर खोखला होता चला जाता है। स्वास्थ्य: असली सुख का आधार एक स्वस्थ शरीर ही सुख, शांति और सफलता की नींव रखता है। जब शरीर ऊर्जावान होता है, तब मन भी प्रसन्न और...