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Showing posts from March, 2025

निर्विशेष परमात्मा

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क्या परमात्मा निर्विशेष हैं? निर्विशेष का अर्थ है—जिसमें कोई विशेषता, गुण, रूप, आकार या भेदभाव न हो। जब हम परमात्मा को निर्विशेष कहते हैं, तो इसका तात्पर्य यह होता है कि परमात्मा किसी भी सीमित या साकार विशेषता से परे हैं। इसे निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है: --- 1. अद्वैत वेदांत और निर्विशेष ब्रह्म अद्वैत वेदांत में शंकराचार्य ने कहा है कि परमात्मा (ब्रह्म) "निर्विशेष, निराकार, अचल और शुद्ध चैतन्य मात्र" हैं। इसका अर्थ यह है कि वे किसी भी गुण या विशेषता से परे हैं और केवल एक अखंड, अविभाज्य चेतना के रूप में विद्यमान हैं। शास्त्र प्रमाण: > "नेति, नेति" (बृहदारण्यक उपनिषद 2.3.6) – परमात्मा को किसी भी विशेष गुण से परिभाषित नहीं किया जा सकता, इसलिए उपनिषद कहते हैं, "यह नहीं, यह नहीं।" --- 2. परमात्मा रूप, रंग और आकार से परे हैं हम जो भी देख या अनुभव कर सकते हैं, वह सीमित होता है—चाहे वह कोई वस्तु हो, व्यक्ति हो, विचार हो या ऊर्जा हो। परमात्मा किसी भी विशेष रूप में सीमित नहीं होते क्योंकि यदि वे किसी विशेष रूप में होते, तो वे सीमित हो जाते। शंकराचार्य क...

आत्मनिष्ठ बने

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आत्मनिष्ठ होना क्या होता है? आत्मनिष्ठ होने का अर्थ है अपने स्वयं के अनुभव, विचार, और सत्य की खोज में केंद्रित रहना। इसका तात्पर्य बाहरी प्रभावों, समाज की मान्यताओं या अन्य लोगों की अपेक्षाओं से प्रभावित हुए बिना अपनी स्वयं की आंतरिक अनुभूति और समझ के आधार पर जीवन जीना है। यह आत्मसाक्षात्कार की ओर बढ़ने का एक चरण भी हो सकता है, जहाँ व्यक्ति बाहरी सत्य के बजाय अपने भीतर के सत्य को पहचानने और अनुभव करने का प्रयास करता है। आत्मनिष्ठ व्यक्ति अपने विचारों, भावनाओं और क्रियाओं के प्रति सजग होता है और उन्हें बाहरी मानकों से नहीं, बल्कि अपनी आंतरिक बुद्धि, आत्म-निरीक्षण और अनुभव के आधार पर परखता है। ध्यान और आत्म-निरीक्षण की साधना आत्मनिष्ठ बनने में सहायक होती है, क्योंकि इससे व्यक्ति अपने मन, विचारों और वास्तविक स्वरूप को अधिक गहराई से समझ सकता है। आत्मनिष्ठ कैसे बनें? आत्मनिष्ठ होने के लिए व्यक्ति को अपने भीतर की गहराइयों में उतरना होता है और बाहरी प्रभावों से स्वतंत्र होकर स्वयं को पहचानना होता है। यह एक सतत अभ्यास है जिसमें ध्यान, आत्म-निरीक्षण और आंतरिक सजगता की आवश्यकता होती ...

सब कुछ आनंद है

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गहरी स्वांस के लाभ

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*गहरी स्वांस के लाभ*  शांति से गहरी स्वांस या एब्डॉमिनल ब्रीदिंग (Abdominal Breathing), जिसे डायफ्रामेटिक ब्रीदिंग भी कहा जाता है, दिन में चार बार (सुबह, दोपहर, शाम और रात) 10-10 बार करने से कई शारीरिक और मानसिक लाभ होते हैं। *शारीरिक लाभ:* 1. *रक्तचाप को नियंत्रित करता* *है* – यह हाई ब्लड प्रेशर को कम करने में सहायक होता है। *2. प्रोस्टेट और पाचन स्वास्थ्य में सुधार* – पेट और आंतों की मांसपेशियों को आराम देकर पाचन को मजबूत करता है। 3. *श्वसन तंत्र को मजबूत करता है* – फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है और ऑक्सीजन आपूर्ति बेहतर होती है। 4. *हृदय स्वास्थ्य में सुधार* – यह हृदय की धड़कन को संतुलित करता है और हृदय रोगों का खतरा कम करता है। 5. *प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता* है?– यह शरीर की इम्यूनिटी को मजबूत करता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। *मानसिक और आध्यात्मिक लाभ:* 1. *तनाव और चिंता को कम करता* है – यह कोर्टिसोल (तनाव हार्मोन) के स्तर को कम करता है। 2. *ध्यान और आत्म-निरीक्षण में सहायक* – मन को शांत कर स्वानुभूति को गहरा करता है। *3. माइंडफुलनेस को बढ़ाता है* – सजगता से वर्त...