ऊर्जा और विचार से ख़ुशी प्राप्त करें।
मौज में रहें,दुखी होना अज्ञान है।
शरीर, ऊर्जा,और विचार का विज्ञान।
इस भौतिक शरीर के क्रियाकलाप मनुष्य के विचारों और बुद्धि पर आधारित होते हैं।शरीर के स्वस्थ्य या अस्वस्थ होने में मनुष्य के विचार एक मात्र कारण होते हैं। शरीर का मन के साथ सूक्षम संबंध होता है जो मानव बुद्धि यदि समझ पाती है और विश्वास कर पाती है तो जीवन की उच्चतम अभिव्यक्ति होने की संभावना होती है। शरीर की अधिकांश बीमारियों के पीछे अस्वस्थ मन होता है। किसी दिन जब आपके मन या बुद्धि से ज्यादा काम लेते हैं या किसी दिन विचारों की उथल पुथल ज्यादा हो तो उस दिन हो सकता है आपका शरीर अधिक थकावट महसूस करें। यह सब ऊर्जाओं और आपके विचारों का खेल है, लीला है।अच्छे विचार रखने का चुनाव करने का अधिकार आपके पास सदा से ही है।
शरीर और मन के इसी संबंध को ध्यान-व्यायाम का एक प्रयोग कर समझते हैं।
आंखें बन्द करके हृदय-चक्र पर 10 सेकेंड के लिए ध्यान लगाइए.... और फिर ऐसा सोचिए कि जैसे आप घर से निकलकर सामने सड़क पर आ गए हैं... इसके बाद दौड़ना शुरु करना है... दौड़ते हुए अपने पैरों के जोडो़ं और मांसपेशियों पर ध्यान देना कि दौड़ते हुए इन पर कैसा दबाव पड़ता है। करीब ५ मिनट के इस मानसिक ध्यान के बाद आंखें खोल लें।अनुभव करें कि आपके शरीर, मन,भाव में क्या परिवर्तन आया।
अगर यह ध्यान अच्छे से कर पाए तो आपको लगेगा कि जैसे आप अभी सही में दौड़ लगाकर आ रहे हैँ.... जोडो़ पर दबाव बढे़गा व सांस तेज चलने लगेगी। दौड़ने के अलावा आप साधारण पी टी या योगासन भी कर सकते हैं और समय भी बढा़ सकते हैं। इसका असर वही होगा जो शारीरिक व्यायाम का होता है। इसी प्रकार आप अपना मनपसन्द खेल भी खेल सकते हैं.... बहुत मजा आता है। और थोड़े दिन में आपका वजन भी कम हो जाए तो अचरज ना करें।
आशा है आपको मन और शरीर का संबंध ठीक से समझ में आ गया होगा।यह महत्व की जानकारी हैं।इसे आत्मसात करें।
ऊर्जा का नियम है कि वह विचारों के पीछे या साथ-साथ चलती है (energy follows thoughts)। यानि आप जो और जैसा सोचोगे, ऊर्जा वहीं उसी रूप में जाना आरंभ कर देगी... और जीवन में उसी प्रकार की वस्तु या स्थिति का सृजन भी होगा। इसी नियम के तहत मनुष्य का मन अदृश्य को दृश्य बनाता है.... और अज्ञानवश उनसे सांसारिक सुख या दुख निर्माण करता है जबकि वह स्वयं ही अखंड आनंद का श्रोत है।
पाॅजिटिव या नेगेटिव विचारों,भावनाओं से प्रभावित ऊर्जा का प्रभाव अन्ततः शरीर पर और आपकी अभिव्यक्ति पर पड़ता ही है। यह आपके हाथ में है कि इसको शरीर पर भोगना है या वैचारिक या भावनात्मक स्तर पर रोकना है। अपने मन या विचारों के पैटर्न को बदलकर इस भौतिक संसार को बदलते देखना चाहते हैं तो आपको विचारों और भावनाओं के प्रति सजग होना होगा और होशपूर्वक स्वस्थ विचारों का चुनाव करना होगा।.... अंतरयात्रा के आदि, मध्य,और अंत में अर्थात हर समय आनन्द ही है,क्योकि आनंद के श्रोत आप स्वयं ही हो
... बस आपको इरादा करना है।
मंगल हो।
Very nice
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