मैं की समझ

*सभी मनुष्य स्वयं को मैं कहते हैं और यह मैं किसको कहते हैं इससे अनभिज्ञ है।इस मैं को कैसे अनुभव करें?*

"मैं" का अनुभव करना आत्म-अवलोकन और गहन आत्मचिंतन का विषय है। 
आमतौर पर, जब हम "मैं" कहते हैं, तो हमारा ध्यान शरीर, मन, विचारों, या भावनाओं पर होता है। लेकिन क्या ये वास्तव में "मैं" हैं, या ये केवल "मैं" के बाहरी स्तर हैं?

"मैं" को अनुभव करने की सत्य समझ (नासमझी):

1. विचारों से परे ही सत्य है 

हम स्वयं को अपने विचारों, पहचान, और भूमिकाओं से जोड़ते हैं। लेकिन यदि हम इन सबसे परे जाकर देखें, तो यह समझ मिलती है कि"मैं" 
है—शुद्ध चेतना।

इसके लिए समझ ध्यान (मेडिटेशन) आवश्यक है।

विचारों का साक्षी बनने का अभ्यास करें, उन्हें स्वयं से अलग देखें।

2. स्वयं से पूछना – "मैं कौन हूँ?"

यह प्रश्न (Who am I?) आत्म-अवलोकन का सबसे सरल और प्रभावी तरीका है।

जब हम इस प्रश्न को गहराई से पूछते हैं, तो शरीर, मन, और पहचान की परतें हटती जाती हैं, और हम शुद्ध "मैं" की अनुभूति कर सकते हैं।

3. अभी और यहीं पर (वर्तमान) ध्यान केंद्रित करें

"मैं" अतीत या भविष्य में नहीं, बल्कि इसी क्षण में विद्यमान है।

जब हम पूर्ण रूप से वर्तमान में होते हैं, तब "मैं" का शुद्ध अनुभव संभव होता है।

4. आत्म-साक्षात्कार

ध्यान, योग, और आत्म-निरीक्षण के माध्यम से "मैं" की अनुभूति की जा सकती है।

उपनिषदों और अद्वैत वेदांत में "अहं ब्रह्मास्मि" (मैं ब्रह्म हूँ) का संदेश दिया गया है, जिसका अर्थ है कि हमारा सच्चा "मैं" सीमित नहीं है, बल्कि अनंत है।

निष्कर्ष

"मैं" को अनुभव करने के लिए विचारों, इच्छाओं और पहचान से ऊपर उठना आवश्यक है। जैसे-जैसे हम अपनी वास्तविक प्रकृति को पहचानते हैं, वैसे-वैसे आत्मज्ञान की अनुभूति होती है। ध्यान, आत्म-अवलोकन और "मैं कौन हूँ?" का प्रश्न पूछने के उपरांत मन का मौन ही इस अनुभव की कुंजी है।

सत्य महेश, भोपाल

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