नेत्र ज्योति

*नेत्रघूर्णन, अनुलोम-विलोम प्राणासनः– सिद्वासन*

अथवा वज्रासन में बैठकर नेत्रों द्वारा सर्वप्रथम भ्रूमध्य / नासाग्र अथवा ठीक सामने देखते हैं फिर आँखों को बाँयी और घुमाकर श्वास लेते हैं। फिर आँखों को दाँयी और घुमाकर श्वास छोड़ देते हैं फिर उसी ओर से श्वास लेकर आँखों को बाँयी और घुमाकर श्वास छोड़ते हैं, उसी ओर से श्वास लेकर आँखों को दाँयी और घुमाकर श्वास छोड़ते हैं। इस अभ्यास में एकान्तर क्रम से श्वास बाँये और दाँये नासा रन्ध्र से प्रविष्ट और निर्गत होता है।
यह अनुलोम-विलोम प्राणायाम की सर्वोत्कृष्ट और

सूक्ष्मतम विधि है। इसके अभ्यास से मात्र नेत्रघूर्णन (eye movement) से इडा और पिंगला स्वर परिवर्तित किया जा सकता है।

अंत में हाथों की हथेलियों को अच्छी तरह आपस में रगड़कर, इस तरह आँखों पर रखते हैं कि अंगूठे के नीचे का शुक्रवलय का भाग (thener eminence) नेत्रों के ऊपर ठीक से व्यवस्थित हो जाये। जब ऊष्ण हथेलियों का तापमान सामान्य हो जाये तो हथेलियों को नेत्रों से हटा लेना चाहिए। यह प्रक्रिया तीन बार अवश्य करनी चाहिए क्योंकि नेत्र प्रकाश (आलोचक पित्त) स्रोत हैं इनसे निकलने वाली किरणों के प्रभाव से ही मनुष्य किसी भी वस्तु को देखने में समर्थ होता है। हथेलियों के द्वारा हस्तऊष्मस्वेदन विधि द्वारा नेत्रों में स्थित आलोचक पित्त की पुष्टि होती है। अतः इसका नियमित अभ्यास नेत्र ज्योतिवर्धन के लिए हितकर है।

Comments

Popular posts from this blog

चमत्कारी स्वर विज्ञान

पूर्ण मुक्ति की प्रार्थना

रेकी दिनचर्या