दुःख मान्यता है
दुःख मान्यता है।
दुःख है ही नहीं, ये तुम्हारी सिर्फ मान्यता है। तुम्हारा अज्ञान है।
और तुम दुःख की वजह ,कारण और उत्तर ढूंढने के लिए बाहर किताबें पढ़ते रहते हो।
किताब कहती है, पिछले जन्म के कारण पिछले कर्म के कारण। लेकिन सवाल ये है कि पिछले जन्म में भी दुःख क्यों था ?
फिर किताब कहती हैे, उसके अगले जन्म के कारण तो...... ये उत्तर नही है।
पहला जन्म हुआ तब दुःख क्यों था ? फिर किताब कहती है, ये सब भगवान की लीला है।
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क्या आप मानते हैं कि... भगवान की लीला से दुःख पैदा होता है ?
क्या तुम्हे दुःख देने के लिए भगवान लीला करता है ?
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नहीं, दुःख आपकी मान्यता है।
धोखा है।
जैसे अँधेरा दूर करने के लिए प्रकाश चाहिए, वैसे ही दुःख तब दूर होगा जब आप जागेंगे और भीतर उतरने का साहस करेंगे।
दुःख का उत्तर और हल किताब में नहीं भीतर है भीतर ।
दुःख से मुक्त नहीं,दुःख को मुक्त करना है।
उठो,जागो,आनंद।
मौज में रहो।
😊मौजी महेश😊
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