सत्य बोध

  1. प्रभु की सुरक्षा में सुरक्षित सुनहरी प्रकाश-पुंज की अनुभूति करें, और इस दिव्य संरक्षण के लिए गहराई से धन्यवाद करें।

  2. हर विचार—चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक—को केवल दृष्टा भाव से देखें। जानें कि कोई भी विचार आपका नहीं है, और आप स्वयं विचार नहीं हैं।

  3. यह भाव दृढ़ करें कि ईश्वर सदैव पूर्ण स्वास्थ्य की अभिव्यक्ति करता है — और आप उसी पूर्णता के प्रतीक हैं।

  4. सब कुछ ईश्वरमय है — हर अनुभव, हर रूप, हर क्षण उसी की लीला है।

  5. सत्य कभी खो नहीं सकता, और माया कभी वास्तव में मिल नहीं सकती।

  6. अपनी मूल ईश्वरीय शक्ति को स्मरण करें, और अपने सत्य अनुभव को सहजता से प्रकट होने दें।

  7. निरंतर क्षमा और कृतज्ञता ही स्थायी प्रसन्नता की चाबी है। अपनी और दूसरों की भूलों को क्षमा करें — क्योंकि वास्तव में ‘दूसरा’ कोई है ही नहीं। सदा कृतज्ञ रहें।

  8. बिना शर्त प्रेम का अभ्यास सजगता से करें। बिना किसी अपवाद के, सभी को बेशर्त प्रेम दें — यही सच्ची भक्ति है।

  9. न तुलना, न ठप्पा, न चिपकाव — क्योंकि प्रत्येक आत्मा ईश्वर की अनूठी रचना है। ईश्वर की अनंत कृपाओं का निरंतर स्मरण करें, और अपनी दृष्टि को नाम, रूप, आकार से परे उस अनंत, अदृश्य, अगोचर, सर्वव्यापी सत्य पर स्थिर रखे।

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