ईश्वर ही है,तुम भी वही हो।

*ईश्वर की सहज पहचान हो रही है*
*– सत्य की अनुभूति में डूबी एक कविता*

हर साँस में जैसे कोई सरगम बह रही है,
मन के मौन में कोई धुन बज रही है।

न मंदिर की घंटियों में, न ग्रंथों की पंक्तियों में,
ईश्वर तो बस इस पल की सादगी में रह रहा है।

न बाहरी खोज, न लंबी साधना का शोर,
बस खुद से मिलने का एक परमशांति का क्षण।

जब  स्वीकारा दुःख को भी वरदान समझ,
तब भीतर एक मौन, ईश्वरीय गूंज बन गई सहज।

न कोई प्रश्न अब, न उत्तर की तलाश है,
बस जो कुछ है, वही तो परम प्रकाश है।

ईश्वर अब कोई अलग नहीं, दूर नहीं,
वह तो हर धड़कन में, हर क्षण में भर रही है।

ईश्वर की सहज पहचान हो रही है,
मैं है ही नहीं— एक परम ज्योति सी बह रही है।

ईश्वर से भिन्न कुछ भी नहीं है,
ईश्वर ही सत्य है, शेष सब भी 
ईश्वर ही है।
*सत्य महेश भोपाल*

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