अच्छाई और बुराई
सत्यमहेश भोपाल:
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अच्छाई और बुराई का शाश्वत संघर्ष: एक आत्मचिंतन
संसार में जब से चेतना का प्रादुर्भाव हुआ है, तब से ही एक गहन और अदृश्य संघर्ष चला आ रहा है — अच्छाई और बुराई के बीच। यह संघर्ष केवल बाहरी दुनिया में नहीं, अपितु प्रत्येक मानव के अंतर्मन में भी निरंतर चलता रहता है। यह केवल धार्मिक ग्रंथों की कथा नहीं, बल्कि मानव जीवन की गूढ़ और अनुभवसिद्ध सच्चाई है।
अच्छाई और बुराई: क्या हैं ये शक्तियाँ?
अच्छाई वह शक्ति है जो प्रेम, करुणा, सेवा, सत्य, अहिंसा और समर्पण को जन्म देती है। यह वह पक्ष है जो हमें जोड़ता है — एक-दूसरे से, प्रकृति से, और परमात्मा से।
बुराई वह प्रवृत्ति है जो अहंकार, हिंसा, लोभ, द्वेष और अज्ञान से उत्पन्न होती है। यह हमें अलग करती है — स्वार्थ में, भय में, और माया में उलझा देती है।
इन दोनों का संघर्ष प्रकृति के संतुलन का आधार है। जैसे अंधकार के बिना प्रकाश की पहचान नहीं होती, वैसे ही बुराई के अस्तित्व से ही अच्छाई की महिमा प्रकट होती है।
इतिहास में झलकता संघर्ष
रामायण में रावण और राम का युद्ध, महाभारत में कौरवों और पांडवों का संघर्ष, ईसा मसीह का बलिदान, बुद्ध का आत्मप्रकाश — ये सब उसी शाश्वत द्वंद्व के प्रतीक हैं। इतिहास के हर युग में अच्छाई ने बुराई का सामना किया है, कभी हारकर फिर उठी है, और अंततः विजय पाई है। यह सत्य केवल मिथकों की बात नहीं, बल्कि जीवन की मूल धारा है।
आंतरिक संघर्ष: असली रणभूमि
हम अक्सर सोचते हैं कि अच्छाई और बुराई बाहर के संसार में टकरा रही हैं, परंतु असली संग्राम हमारे भीतर ही चल रहा होता है — हमारे विचारों, भावनाओं और निर्णयों में। जब हम किसी परिस्थिति में सत्य और झूठ, दया और क्रोध, क्षमा और प्रतिशोध के बीच चुनते हैं, तब हम अपने भीतर के 'राम' और 'रावण' को महसूस करते हैं।
क्यों ज़रूरी है यह संघर्ष?
यह संघर्ष मानवता को जागरूक, विवेकशील और विकासशील बनाए रखता है। बुराई चुनौतियाँ लाती है, पर अच्छाई समाधान ढूंढती है। यह द्वंद्व ही है जो आत्मा को परिष्कृत करता है, उसे उच्चतर चेतना की ओर ले जाता है।
विजय का मार्ग: कैसे जीते अच्छाई?
1. स्वअनुशासन और आत्मनिरीक्षण: अपने विचारों और कर्मों का सतत मूल्यांकन करें।
2. सत्य और करुणा का पालन करें: चाहे जितनी कठिनाइयाँ आएं, सच्चाई और सहृदयता को न छोड़ें।
3. प्रार्थना और ध्यान: आंतरिक शक्ति के जागरण हेतु नियमित साधना करें।
4. संगति का प्रभाव: सदाचारी, सकारात्मक और आध्यात्मिक लोगों की संगति अपनाएँ।
उपसंहार
अच्छाई और बुराई का यह संघर्ष कोई समाप्त होने वाला युद्ध नहीं है; यह जीवन का लयबद्ध नर्तन है। परंतु जब हम भीतर से जागरूक हो जाते हैं, तो बुराई की शक्ति कमज़ोर पड़ने लगती है और अच्छाई हमारे जीवन का केंद्र बन जाती है।
यही मानव जीवन का उद्देश्य है — इस संघर्ष के माध्यम से आत्मा की विजय सुनिश्चित करना। और जब एक आत्मा विजयी होती है, तो संपूर्ण मानवता की दिशा बदल सकती है।
"तमसो मा ज्योतिर्गमय" — अंधकार से प्रकाश की ओर यही यात्रा, इस संघर्ष का अंतिम सत्य है।
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संसार में जब से चेतना का प्रादुर्भाव हुआ है, तब से ही एक गहन और अदृश्य संघर्ष चला आ रहा है — अच्छाई और बुराई के बीच। यह संघर्ष केवल बाहरी दुनिया में नहीं, अपितु प्रत्येक मानव के अंतर्मन में भी निरंतर चलता रहता है। यह केवल धार्मिक ग्रंथों की कथा नहीं, बल्कि मानव जीवन की गूढ़ और अनुभवसिद्ध सच्चाई है।
अच्छाई और बुराई: क्या हैं ये शक्तियाँ?
अच्छाई वह शक्ति है जो प्रेम, करुणा, सेवा, सत्य, अहिंसा और समर्पण को जन्म देती है। यह वह पक्ष है जो हमें जोड़ता है — एक-दूसरे से, प्रकृति से, और परमात्मा से।
बुराई वह प्रवृत्ति है जो अहंकार, हिंसा, लोभ, द्वेष और अज्ञान से उत्पन्न होती है। यह हमें अलग करती है — स्वार्थ में, भय में, और माया में उलझा देती है।
इन दोनों का संघर्ष प्रकृति के संतुलन का आधार है। जैसे अंधकार के बिना प्रकाश की पहचान नहीं होती, वैसे ही बुराई के अस्तित्व से ही अच्छाई की महिमा प्रकट होती है।
इतिहास में झलकता संघर्ष
रामायण में रावण और राम का युद्ध, महाभारत में कौरवों और पांडवों का संघर्ष, ईसा मसीह का बलिदान, बुद्ध का आत्मप्रकाश — ये सब उसी शाश्वत द्वंद्व के प्रतीक हैं। इतिहास के हर युग में अच्छाई ने बुराई का सामना किया है, कभी हारकर फिर उठी है, और अंततः विजय पाई है। यह सत्य केवल मिथकों की बात नहीं, बल्कि जीवन की मूल धारा है।
आंतरिक संघर्ष: असली रणभूमि
हम अक्सर सोचते हैं कि अच्छाई और बुराई बाहर के संसार में टकरा रही हैं, परंतु असली संग्राम हमारे भीतर ही चल रहा होता है — हमारे विचारों, भावनाओं और निर्णयों में। जब हम किसी परिस्थिति में सत्य और झूठ, दया और क्रोध, क्षमा और प्रतिशोध के बीच चुनते हैं, तब हम अपने भीतर के 'राम' और 'रावण' को महसूस करते हैं।
क्यों ज़रूरी है यह संघर्ष?
यह संघर्ष मानवता को जागरूक, विवेकशील और विकासशील बनाए रखता है। बुराई चुनौतियाँ लाती है, पर अच्छाई समाधान ढूंढती है। यह द्वंद्व ही है जो आत्मा को परिष्कृत करता है, उसे उच्चतर चेतना की ओर ले जाता है।
विजय का मार्ग: कैसे जीते अच्छाई?
1. स्वअनुशासन और आत्मनिरीक्षण: अपने विचारों और कर्मों का सतत मूल्यांकन करें।
2. सत्य और करुणा का पालन करें: चाहे जितनी कठिनाइयाँ आएं, सच्चाई और सहृदयता को न छोड़ें।
3. प्रार्थना और ध्यान: आंतरिक शक्ति के जागरण हेतु नियमित साधना करें।
4. संगति का प्रभाव: सदाचारी, सकारात्मक और आध्यात्मिक लोगों की संगति अपनाएँ।
उपसंहार
अच्छाई और बुराई का यह संघर्ष कोई समाप्त होने वाला युद्ध नहीं है; यह जीवन का लयबद्ध नर्तन है। परंतु जब हम भीतर से जागरूक हो जाते हैं, तो बुराई की शक्ति कमज़ोर पड़ने लगती है और अच्छाई हमारे जीवन का केंद्र बन जाती है।
यही मानव जीवन का उद्देश्य है — इस संघर्ष के माध्यम से आत्मा की विजय सुनिश्चित करना। और जब एक आत्मा विजयी होती है, तो संपूर्ण मानवता की दिशा बदल सकती है।
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