समर्पण
- भीतर के "मैं" का मिटना आवश्यक है - सुकरात समुन्द्र तट पर टहल रहे थे | उनकी नजर तट पर खड़े रोते हुए एक बच्चे पर पड़ी | वे उसके पास गए और प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरकर पूछा , -''तुम क्यों रो रहे हो? लड़के ने कहा- 'ये जो मेरे हाथ में प्याला है इसमें मैं इस समुन्द्र को भरना चाहता हूँ पर यह मेरे प्याले में समाता ही नहीं ' | बच्चे की बात सुन सुकरात विस्माद में चले गये और स्वयं रोने लगे | बच्चा कहने लगा- आप भी मेरी तरह रोने लगे पर आपका प्याला कहाँ है? सुकरात ने कहा - बालक, तुम छोटे से प्याले में समुन्द्र भरना चाहते हो,और मैं अपनी छोटी सी बुद्धि में सारे संसार की ज्ञान भरना चाहता हूँ | आज तुमने सिखा दिया कि समुन्द्र प्याले में नहीं समा सकता है । बच्चे ने प्याला समुद्र में फेंक दिया और बोला- " सागर अगर तू मेरे प्याले में नहीं समा सकता तो मेरा प्याला तो तुम्हारे अन्दर समा सकता है " | इतना सुनना था कि सुकरात बच्चे के प