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सकारात्मक चिंतन

1.मैं हर पल ईश्वर की कृपा में हूँ। मैं एक जादुई जीवन जीता हूँ। ईश्वर के प्रेम का जादू मेरी देखभाल करता है और मैं सर्वशक्तिमान परमात्मा से प्रतिरक्षित हूँ। मैं स्वस्थ,सजग और आनंदित हूँ। मेरा मन,शरीर, विवेक हर पल ईश्वर के सद्गुणों की अभिव्यक्ति करता है।मैं ईश्वरीय अनुभूति में मस्त हूँ। मौज में हूँ।ऐसा ही है।ऐसा ही है। ऐसा ही है।धन्यवाद ईश्वर। 2.मुझे धन पसंद है।मैं इससे प्रेम करता हूँ।मैं इसका समझदारी से,सृजनात्मकता से और न्यायपूर्ण प्रयोग करता हूँ।मेरे जीवन में धन का प्रवाह लगातार हो रहा है।मैं इसे ख़ुशी से मुक्त करता हूँ और यह अद्भुत तरीक़े से कई गुना होकर मेरे पास लौटता है।यह अच्छा है,बहुत अच्छा है।मैं इसका प्रयोग सिर्फ भलाई के लिए करता हूँ।मैं अपनी आर्थिक समृद्धि और मानसिक दौलत के लिए कृतज्ञ हूँ।धन्यवाद। 3.मैं ईश्वर की तथाअपने अवचेतन मन की असीमित समृद्धि के साथ एकाकार हूँ।समृद्धि, स्वास्थ्य और सफलता मेरे जन्मसिद्ध अधिकार हैं।धन मेरी ओर मुक्तता से,प्रचुरता से और अनंतरूप से प्रवाहित हो रहा है।मैं सदा सच्चे मूल्य के प्रति सहज सचेत हूँ।मैं अपनी प्रतिभाओं को मुक्तता से देता हूँ और मुझे अत्यध

आनन्द ही आनन्द है।

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इस धरती पर जन्म लेने वाला हर मनुष्य ईश्वर की कृपा है। इस बात को मन भुला देता है,इसीलिए उसे मनुष्य कहा गया है, ईश्वर नहीं। वास्तविकता में ईश्वर ही मनुष्य की आकृति में प्रकट होता है और फिर भूल जाता है कि वह ईश्वर है। वह क्यों भूल जाता है? इसका एक कारण है कि अगर ईश्वर यह याद रखेगा कि वह ईश्वर है तो वह मनुष्य होने का आनंद नहीं ले पाएगा। मनुष्य होने का आनंद है कि मनुष्य बन कर ईश्वर को जाना जाए, पहचाना जाए और अनुभव किया जाए और उस आनंद को अभिव्यक्त किया जाए। हम,आप,वह, इस धरती पर सारे लोग उसी ईश्वर की अभिव्यक्ति हैं। परंतु अज्ञान वश भेद बुद्धि के कारण मनुष्य तुलना करता है, अच्छा, बुरा मानता है, गलत, सही करता है और इसके द्वारा जो भ्रांतियां होती हैं, उन्हें दूर करने के लिए विभिन्न उपाय करता है। वास्तविकता यह है कि मनुष्य ना कर्ता है, न ही भोक्ता। न कर्म है और नही कर्म बन्धन।हाँ, अज्ञान में किए गए कर्म बंध बना सकते हैं।इस ब्रह्मांड में सब कुछ प्रकृति के द्वारा स्व घटित स्वचालित हो रहा है। हम आप सभी कठपुतली के समान  नाटक खेल रहे हैं और इसको अपना संसार मानकर सुख और दुख में डूबते और तैर