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Showing posts from September, 2022

स्वांस का आना जाना

*अभी तक खोजे गए मन्त्रो में से सबसे गहरा मन्त्र है-* *"श्वास लेना और छोड़ना"*                           *श्वास भीतर जाती है, इसका आपके प्राणों में पूरा बोध हो कि श्वास भीतर जा रही है। श्वास बाहर जाती है, इसका भी आपके प्राणों में पूरा बोध हो कि श्वास बाहर जा रही है।और आप पाएंगे कि भीतर एक गहन शांति उतर आई हैं।* यदि आप श्वास को भीतर जाते हुए और बाहर जाते हुए,भीतर जाते हुए और बाहर जाते हुए देख सकें, तो यह अभी तक खोजे गए मन्त्रो में से सबसे गहरा मन्त्र हैं। श्वास हमेशा वर्तमान में हैं। हम अतीत में श्वास नही ले सकते और न ही भविष्य में श्वास ले सकते हैं। श्वास लेना हमेशा इसी क्षण में हैं। लेकिन हम अतीत के बारे में सोच सकते हैं और हम भविष्य के बारे में सोच सकते हैं।  शरीर तो वर्तमान में होता हैं, लेकिन मन अतीत और भविष्य के बीच झूलता रहता हैं। और शरीर और मन के बीच में एक विभाजन पैदा हो जाता हैं। शरीर वर्तमान में रहता हैं और मन कभी भी वर्तमान में नही रहता हैं।और वे कभी भी मिलते नही, वे कभी एकदूसरे के सामने नही आते। और उसी विभाजन के कारण विषाद, चिंता, और तनाव पैदा होते हैं।  अनेक तनावग

आत्मज्ञान हेतु वेदों के चार महावाक्य

*आत्मज्ञान हेतु वेदो में चार महावाक्य हैं।* जैसेः *नेति नेति*  (यह भी नही, यह भी नहीं) *अहं ब्रह्मास्मि*  (मैं ब्रह्म हूँ) *अयम् आत्मा ब्रह्म*  (यह आत्मा ब्रह्म है) *यद् पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे* (जो पिण्ड में है वही ब्रह्माण्ड में है) वेद की पूर्ण व्याख्या इन महावाक्यों से होती है। वेद,उपनिषद उद्घोष करते हैं कि मनुष्य देह, इंद्रिय और मन का संघटन मात्र नहीं है, बल्कि वह सुख-दुख, जन्म-मरण की मान्यता से परे चेतन दिव्यस्वरूप है, आत्मस्वरूप है। आत्मभाव से जागृत मनुष्य रूप में ब्रह्म जगत का द्रष्टा भी है और दृश्य भी। जहां-जहां ईश्वर की सृष्टि का आलोक व विस्तार है, वहीं-वहीं उसकी पहुंच है। वह आत्मस्वरूप परमात्मा  है। यही जीवन का चरम-परम पुरुषार्थ ज्ञान है। इस परम भावबोध का उद्घोष करने के लिए उपनिषद के चार महामंत्र हैं। *तत्वमसि*  (तुम वही हो), *अहं ब्रह्मास्मि*  (मैं ब्रह्म हूं), *प्रज्ञानं ब्रह्मा*  (प्रज्ञा ही ब्रह्म है), *सर्वम खिलविद्म ब्रह्मा*  (सर्वत्र ब्रह्म ही है)। उपनिषद के ये चार महावाक्य मानव के लिए महाप्राण, महोषधि एवं संजीवनी बूटी के समान हैं, जिन्हें जान व मान कर जीव तदरूप हो आनं

जल पर भावनाओं का प्रभाव

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विचारों का शरीर पर प्रभाव जब आप भ्रूण अवस्था में थे तब आप 99.9% पानी में थे। जब जन्म हुआ तब 90% पानी में थे। वयस्क अवस्था में 70% पानी हमारे सबके शरीर में रहता है व वृद्धावस्था में करीब 50% पानी हमारे शरीर में रहता है।       इस प्रकार जीवन की अधिकांश अवस्थाओं में पानी हमारे शरीर का मुख्य हिस्सा रहता है । जापान के डॉक्टर  श्री मसारू मोटो ने अपनी वैज्ञानिक खोज से व पानी के कणों की फोटो लेकर यह प्रमाणित किया है कि पानी के कण मधुर संगीत पर अच्छी प्रतिक्रिया दर्शाते हैं जबकि कठोर बेहूदे सुरों पर पानी के कणों का ढांचा खराब हो जाता है। उन्होंने अलग-अलग वातावरण बना कर जबप्रयोग किये और पानी के कणों के चित्र लिये तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि खुशी, सत्य, प्रेम व कृतज्ञता के लिये पानी के कणों ने सुंदर षटकोण बनाया।। https://youtu.be/1qQUFvufXp4     (देखें वीडियो)  जबकि जब इन्हीं पानी के कणों को एक कागज पर 'बेवकूफ' लिखकर उस जार पर लपेट दिया जिसमें यह पानी था तो क्रिस्टल की तस्वीर टेड़ी मेड़ी व वीभत्स सी बनी। थैन्कयू लिखने पर क्रिस्टल की तस्वीर आकर्षक बनी। इससे यह सिद्ध होता

100 benefits of Reiki

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🌺🌺🌺🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼 100 BENEFITS OF REIKI 🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼 🌼PHYSIOLOGICAL BENEFITS:🌼 1- It lowers oxygen consumption 2- It decreases respiratory rate 3- It increases blood flow and slows the heart rate 4- Increases exercise tolerance 5- Leads to a deeper level of physical relaxation 6- Good for people with high blood pressure 7- Reduces anxiety attacks by lowering the levels of blood lactate 8- Decreases muscle tension 9- Helps in chronic diseases like allergies, arthritis etc. 10- Reduces Pre-menstrual Syndrome symptoms 11- Helps in post-operative healing 12- Enhances the immune system 13- Reduces activity of viruses and emotional distress 14- Enhances energy, strength and vigour 15- Helps with weight loss 16- Reduction of free radicals, less tissue damage 17- Higher skin resistance 18- Drop in cholesterol levels, lowers risk of cardiovascular disease 19- Improved flow of air to the lungs resulting in easier breathing 20- Decreases the aging process. 21- Higher levels of DHEAS (D

असली रेकी कौन सी है?

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रेकी: कौन सी असली है? जब हम पहली बार रेकी के संपर्क में आए, तो निश्चित रूप से हमने खुद से यह सवाल पूछा क्योंकि जब हमने रेकी पाठ्यक्रम लेने की संभावना के बारे में पूछताछ करना शुरू किया, तो हमें कई विकल्प मिले और उनमें से अधिकांश विभिन्न वाक्यांशों का उपयोग कर रहे थे जैसे: "मूल रेकी", "पारंपरिक" रेकी", "असली रेकी" इत्यादि। इस लेख में, मैं लगभग 26 वर्षों के विभिन्न उपचार उपचारों के अनुभव और रेकी होने के आधार पर इस बारे में अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करने का इरादा रखता हूँ, जिसका मैं ज्यादातर व्यापक उपचारों में उपयोग करता हूं। मैं स्पष्ट कर रहा हूं कि यह मेरा दृष्टिकोण है, पूर्ण सत्य नहीं। इन पंक्तियों को लिखने का उद्देश्य उन लोगों के लिए सजगता और शांति लाना है, जिन्हें इस अद्भुत तरीके से दीक्षा दी जा रही है, जो कि रेकी है, और यदि वे इसे अनुमति देंगे, तो यह उनके जीवन को बदल देगा। रेकी से पहले और बाद का जीवन एक नहीं होता है और यह मैं नहीं कह रहा हूं, लेकिन ज्यादातर लोग जिन्हें मैं जानता हूं या मैंने पढ़ा है, जो रेकी को प्रयोग कर रहे हैं, उनके भी अ

सँसार में कैसे रहें?

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प्रिय मित्रों,  विश्व में घट रही अंधेरी,नकारात्मक घटनाओं से अपना संतुलन न बिगाड़ें, न घृणा करें, न इनकार करें। जोहै, सो है। यह घटनाएं मानव मन की अनसुलझि भावनाओं के संदर्भ में, जो लोगों के अंतरमन में मौजूद है, उसकी अभिव्यक्ति और सामूहिक (उप-) चेतना की गहराई से गैर-सामंजस्यपूर्ण सोच का परिणाम है।  आप एक ईमानदार प्रयास अवश्य कर सकते हैं,अपने भीतर के युद्धों और द्वंदों को सुलझाने के लिए, उन लोगों के साथ शांति बनाएं। जिनके साथ आपने मुश्किल समय बिताया है। आपका जीवन (इसका मतलब यह नहीं है कि उन्होंने आपके साथ जो किया या जो उन्होंने आपसे कहा, उससे आप ठीक मानें, लेकिन उचित समझ यह हो कि अब आप उन सभी यादों के जहरीले बोझ को अपने साथ नहीं ले जाना चाहते हैं)। ईमानदारी से देखें अपने स्वयं के छाया टुकड़ों को (जो कि हम सभी के पास हैं) और उन्हें हल करें (उन्हें ले आओ प्रकाश में, हर बार खुद को थोड़ा बेहतर देखना शुरू करें)। जब प्रत्येक व्यक्ति अपनी नकारात्मक भावनाओं और विचारों की जिम्मेदारी लेना सीखता है और उन्हें मुक्त करें, तो किसी और पर हमला करने की ज़रूरत नहीं होती है, क्योंकि उनकी राय अलग