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Showing posts from August, 2025

मृत्यु का सत्य - एक भ्रम

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**मृत्यु एक भ्रम है** मृत्यु एक ऐसा विषय है जो सदियों से मानवता के मन में गहन विचार और चिंतन का विषय रहा है। जब हम "मृत्यु एक भ्रम है" कहते हैं, तो इसका अर्थ यह है कि मृत्यु मात्र एक शारीरिक अवस्था का अंत है, न कि चेतना या अस्तित्व का। इस दृष्टिकोण के पीछे कई दार्शनिक, धार्मिक और वैज्ञानिक विचारधाराएँ हैं, जो इस अवधारणा को समर्थन देती हैं। ### 1. दार्शनिक दृष्टिकोण भारतीय दर्शन में, विशेषकर वेदांत और अद्वैत वेदांत में, आत्मा को अजर-अमर माना गया है। उपनिषदों में कहा गया है कि आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है। यह शाश्वत, अजर, अमर और अविनाशी है। मृत्यु केवल शरीर का अंत है, आत्मा का नहीं। शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत में कहा है कि आत्मा ही वास्तविक सत्य है, बाकी सब माया (भ्रम) है। ### 2. धार्मिक दृष्टिकोण हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, और सिख धर्म जैसे धर्मों में पुनर्जन्म की अवधारणा महत्वपूर्ण है। इन धर्मों के अनुसार, आत्मा का अस्तित्व एक शरीर से दूसरे शरीर में यात्रा करता है। मृत्यु केवल एक अवस्था का अंत है, जबकि आत्मा का अस्तित्व निरंतर रहता है। इस प्रकार, मृत्यु ...

निर्विशेष परमात्मा

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क्या परमात्मा निर्विशेष हैं? निर्विशेष का अर्थ है—जिसमें कोई विशेषता, गुण, रूप, आकार या भेदभाव न हो। जब हम परमात्मा को निर्विशेष कहते हैं, तो इसका तात्पर्य यह होता है कि परमात्मा किसी भी सीमित या साकार विशेषता से परे हैं। इसे निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है: --- 1. अद्वैत वेदांत और निर्विशेष ब्रह्म अद्वैत वेदांत में शंकराचार्य ने कहा है कि परमात्मा (ब्रह्म) "निर्विशेष, निराकार, अचल और शुद्ध चैतन्य मात्र" हैं। इसका अर्थ यह है कि वे किसी भी गुण या विशेषता से परे हैं और केवल एक अखंड, अविभाज्य चेतना के रूप में विद्यमान हैं। शास्त्र प्रमाण: > "नेति, नेति" (बृहदारण्यक उपनिषद 2.3.6) – परमात्मा को किसी भी विशेष गुण से परिभाषित नहीं किया जा सकता, इसलिए उपनिषद कहते हैं, "यह नहीं, यह नहीं।" --- 2. परमात्मा रूप, रंग और आकार से परे हैं हम जो भी देख या अनुभव कर सकते हैं, वह सीमित होता है—चाहे वह कोई वस्तु हो, व्यक्ति हो, विचार हो या ऊर्जा हो। परमात्मा किसी भी विशेष रूप में सीमित नहीं होते क्योंकि यदि वे किसी विशेष रूप में होते, तो वे सीमित हो जाते। शंकराचार्य क...

आक्रामकता कारण और निवारण

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आक्रामकता: कारण, प्रभाव और समाधान --- प्रस्तावना आक्रामकता (Aggression) एक सामान्य मानवीय भावना है, जो कभी-कभी हमारे व्यवहार में उग्रता, क्रोध या हिंसा के रूप में प्रकट होती है। यह भावना कभी हमारी रक्षा के लिए उपयोगी हो सकती है, तो कभी हमारे संबंधों और समाज में विघटन का कारण बन जाती है। आज के तनावपूर्ण जीवन में आक्रामकता का स्तर दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है, इसलिए इसके मूल कारणों, प्रभावों और समाधान को समझना आवश्यक है। --- आक्रामकता के कारण 1. मानसिक तनाव और अवसाद – जब व्यक्ति मानसिक दबाव में होता है, तो वह छोटी-छोटी बातों पर चिड़चिड़ा और उग्र हो जाता है। 2. अधूरी इच्छाएँ और असंतोष – जब व्यक्ति की इच्छाएँ पूरी नहीं होतीं या वह लगातार असफलता का सामना करता है, तो उसमें निराशा से उपजी आक्रामकता जन्म लेती है। 3. बाल्यकाल के अनुभव – हिंसा, अपमान या अस्वीकृति से भरा बचपन अक्सर वयस्कता में आक्रामक प्रवृत्ति का आधार बनता है। 4. सामाजिक और पारिवारिक वातावरण – जहां संवाद की जगह आदेश और नियंत्रण होता है, वहां व्यक्तित्व में आक्रामकता जन्म ले सकती है। 5. नशा और मानसिक रोग – शराब, ड्रग्स य...

गोत्र का महत्व क्या है?

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गोत्र का महत्व क्या है?  *आपका सही-सही पिन कोड* *क्या आप अपने गोत्र की असली शक्ति को जानते हैं?* * 🧵यह कोई परंपरा नहीं है। कोई अंधविश्वास नहीं है। यह आपका प्राचीन कोड है।* यह पूरा लेख पढ़िए — मानो आपका अतीत इसी पर टिका हो। 1. गोत्र आपका उपनाम नहीं है। यह आपकी आध्यात्मिक डीएनए है। पता है सबसे अजीब क्या है? अधिकतर लोग जानते ही नहीं कि वे किस गोत्र से हैं। हमें लगता है कि यह बस एक लाइन है जो पंडितजी पूजा में कहते हैं। लेकिन यह सिर्फ इतना नहीं है। आपका गोत्र दर्शाता है — आप किस ऋषि की मानसिक ऊर्जा से जुड़े हुए हैं। खून से नहीं, बल्कि विचार, ऊर्जा, तरंग और ज्ञान से। हर हिंदू आध्यात्मिक रूप से एक ऋषि से जुड़ा होता है। वो ऋषि आपके बौद्धिक पूर्वज हैं। उनकी सोच, ऊर्जा, और चेतना आज भी आपमें बह रही है। 2. गोत्र का अर्थ जाति नहीं होता। आज लोग इसे गड़बड़ा देते हैं। गोत्र ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र नहीं दर्शाता। यह जातियों से पहले, उपनामों से पहले, राजाओं से भी पहले अस्तित्व में था। यह सबसे प्राचीन पहचान का तरीका था — ज्ञान पर आधारित, शक्ति पर नहीं। हर किसी का गोत्र होता था।...

जिम्मेदारी का महत्व और लाभ

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जिम्मेदारी का अधूरा अहसास और समय की प्राथमिकता — जीवन को पूर्ण आनंद से जीने की राह बहुत से लोग जीवन में जिम्मेदारियों को पूरी तरह नहीं अपनाते। वे या तो टाल-मटोल करते हैं, या उन्हें लगता है कि समय की कोई विशेष प्राथमिकता तय करना ज़रूरी नहीं है। नतीजा यह होता है कि उनके जीवन में अधूरापन, असंतोष और अवसरों की कमी बनी रहती है। यह स्थिति अक्सर हमारी पुरानी मान्यताओं, सीमित सोच या “मैं जैसा हूं, ठीक हूं” वाले दृष्टिकोण से पैदा होती है। लेकिन अगर हम अपनी मानसिक सीमाओं से बाहर निकलें, तो न केवल अधिक जिम्मेदार बन सकते हैं, बल्कि समय का मूल्य समझकर जीवन का वास्तविक आनंद भी ले सकते हैं। --- 1. जिम्मेदारी का सही अर्थ समझना जिम्मेदारी केवल काम निपटाने या दूसरों को जवाब देने का नाम नहीं है। यह तीन स्तरों पर काम करती है: स्वयं के प्रति जिम्मेदारी – अपने स्वास्थ्य, भावनाओं और लक्ष्यों का ध्यान रखना। दूसरों के प्रति जिम्मेदारी – परिवार, समाज और कार्यस्थल में भरोसेमंद होना। समय के प्रति जिम्मेदारी – यह मानना कि हर पल दोबारा नहीं आएगा, इसलिए उसका सदुपयोग करना। --- 2. समय की प्राथमिकता क्यों जर...

अपान वायु मुद्रा के लाभ

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अपान वायु मुद्रा (Apana Vayu Mudra) को ह्रदय मुद्रा (Heart Mudra) भी कहा जाता है। यह मुद्रा ह्रदय, पाचन, और निचले शरीर की ऊर्जा को संतुलित करने के लिए बहुत उपयोगी मानी जाती है। विशेष रूप से यह हृदय रोगों, गैस, कब्ज, और अपचन में लाभकारी होती है। ✋ अपान वायु मुद्रा कैसे करें? आरामदायक स्थिति में बैठ जाएँ (जैसे पद्मासन, सुखासन या कुर्सी पर पीठ सीधी रखकर)। दोनों हाथों को घुटनों पर रखें, हथेलियाँ ऊपर की ओर। अब प्रत्येक हाथ की: मध्यमा (Middle finger) और अनामिका (Ring finger) को अंगूठे (Thumb) के नीचे मोड़ें। अंगूठा इन दोनों उंगलियों को हल्के से दबाए। तर्जनी (Index finger) को मोड़कर अंगूठे के मूल भाग से स्पर्श कराएं। कनिष्ठा (Little finger) को सीधा रखें। यह मुद्रा कुछ इस प्रकार दिखेगी: तर्जनी - अंगूठे के मूल से स्पर्श मध्यमा + अनामिका - अंगूठे से दबाई गई कनिष्ठा - सीधी 🕒 कितनी देर करें? दिन में 2 से 3 बार , प्रत्येक बार 15 से 20 मिनट तक करें। हृदय के रोगी इसे दिन में 3-4 बार कर सकते हैं। 🧘‍♂️ लाभ: हृदय की गति को संतुलित करता है , हृदयाघात (Heart Attack) क...