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Protection for negative Energy

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Negative Energy Protection या ऊर्जा संरक्षण एक सरल उपाय है जो वास्तव में कई तरीक़ों से किया जा सकता है। यह अपने लिए भी किया जा सकता है और किसी और के लिए भी (यदि वे सहमत हों या आप उन पर सकारात्मक भाव से प्रार्थना/हीलिंग करें)। मैं आपको मुख्य 8 प्रकार के Energy Protection तरीके बता रहा हूँ: 🔹 1. मानसिक / भावनात्मक स्तर पर सकारात्मक सोच और पुष्टि (Affirmations): जैसे – “मैं सुरक्षित हूँ, ईश्वर मेरी रक्षा कर रहे हैं।” Visualization (दृश्य ध्यान): अपने चारों ओर सुनहरी रोशनी या सफेद protective shield की कल्पना करें। 🔹 2. आध्यात्मिक स्तर पर मंत्र/प्रार्थना: "ॐ नमः शिवाय", "ॐ हं हनुमते नमः", "ॐ" आदि मंत्र जप से एक ऊर्जा कवच बनता है। दिव्य शक्ति का आह्वान: अपने इष्टदेव, गुरु या ब्रह्मांड से सुरक्षा की प्रार्थना करना। 🔹 3. रेकी / ऊर्जा चिकित्सा से रेकी Symbols (जैसे CKR, SHK, DKM): इनसे अपने या दूसरे के चारों ओर सुरक्षा घेरा बना सकते हैं। Distance Reiki Protection: फोटो या नाम लिखकर उस पर रेकी भेजना। 🔹 4. प्राकृतिक तत्वों से नमक स्नान / नमक पानी: नेगेटिव एनर्जी ...

अकेलेपन से पूर्णता को प्राप्त करो।

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अकेलेपन से बाहर निकलना कुछ लोगों को बहुत बार कठिन लगता है, लेकिन वास्तव में इसे सहजता से आनंद और खुशी में परिवर्तित किया जा सकता है। यहाँ कुछ सरल और प्रभावी उपाय हैं जो आपकी सहायता करेंगे: 🌸 आंतरिक स्तर पर (Inner Work) स्वयं से जुड़ना – अकेलापन अक्सर तब गहराता है जब हम स्वयं से कट जाते हैं। ध्यान (Meditation), प्राणायाम और आत्म-चिंतन आपको अपने भीतर आनंद का स्रोत को प्रकट करते हैं और आप आनंद बन जाते हैं। आत्म-प्रेम (Self-love) – प्रतिदिन आईने में देखकर मुस्कुराइए और अपने लिए एक स्नेहपूर्ण वाक्य कहिए: “मैं पूर्ण हूँ, मैं प्रेम से भरा हूँ।” कृतज्ञता (Gratitude) – हर दिन 5 बातें लिखें जिनके लिए आप आभारी हैं। यह मन को खुशी और संतोष से भर देता है। 🌺 सामाजिक स्तर पर (Social & Lifestyle) कनेक्शन बनाइए – किसी से लंबी बातचीत न सही, लेकिन छोटी-छोटी बातें (जैसे पड़ोसी, दुकानदार, सहकर्मी से) भी हृदय में जुड़ाव पैदा करती हैं। सामूहिक गतिविधियाँ – कोई हॉबी क्लास, योग ग्रुप, ध्यान समूह या स्वयंसेवा से जुड़ें। इससे नए और सार्थक रिश्ते बनते हैं। डिजिटल संतुलन – सोशल मीडिया प...

प्राप्त ईश्वर की प्राप्ति

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प्राप्त ईश्वर की प्राप्ति     ईश्वर की प्राप्ति दरअसल कोई बाहरी प्राप्ति नहीं है, क्योंकि जैसा आपने कहा — ईश्वर प्राप्त ही है। इसका अर्थ है कि हमें बाहर कहीं ईश्वर को खोजना नहीं है, बल्कि अपने भीतर अनुभव करना है। 👉 इसे समझने के लिए कुछ बिंदु देखिए: 1. अज्ञान का हटना ही प्राप्ति है जैसे सूर्य हमेशा आकाश में है, पर बादल ढक देते हैं। सूर्य को लाना नहीं पड़ता, केवल बादल हटाने होते हैं। उसी प्रकार ईश्वर की प्राप्ति का अर्थ है अज्ञान, अहंकार, और माया के बादलों को हटाना। 2. मन की शांति में ईश्वर का अनुभव जब मन इच्छाओं, भय और द्वेष से शांत हो जाता है, तब अंतर की शुद्ध आभा प्रकट होती है। यह आभा ही ईश्वर-प्राप्ति कहलाती है। 3. कर्म से नहीं, भाव से अनुभव बाहरी कर्म (पूजा-पाठ, तीर्थ, अनुष्ठान) साधन हैं, परंतु प्राप्ति भीतर के समर्पण, प्रेम और आत्मबोध से होती है। जितना गहरा भाव “मैं ही वह हूँ” (अहं ब्रह्मास्मि) बैठता है, उतना ईश्वर का भाव स्पष्ट अनुभव होता है। 4. स्वयं को जानना ही ईश्वर को पाना है। उपनिषद कहते हैं: “तत्वमसि” – तू वही है। जब हम “कर्तापन” और “अलगाव” को छोड़कर आत्मा को ...

अभाव की सोच से मुक्ति

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अभाव की मानसिकता (Scarcity Consciousness) अभाव की मानसिकता वह गहरी जमी हुई सोच है जिसमें हमें हमेशा यह लगता है कि कभी कुछ पर्याप्त नहीं है —चाहे वह पैसा हो, समय हो, प्यार हो, सम्मान हो, अच्छा काम हो या जीवन में अवसर। यह सोच हमें यह विश्वास दिलाती है कि यदि किसी और को सफलता मिल रही है तो उसका अर्थ है कि हम हार रहे हैं। इसी कारण हम कई बार ऐसे रिश्तों या नौकरियों में फँसे रहते हैं जो हमें संतुष्टि नहीं देते—सिर्फ इसलिए क्योंकि हमें डर लगता है कि शायद इससे बेहतर विकल्प कहीं नहीं है। अधिकतर समय हमारा मस्तिष्क और उसकी न्यूरल पाथवे (Neural Pathways) अभाव की सोच से बने रहते हैं। बचपन से हमें यह मान्यताएँ सिखाई जाती हैं—“कभी पर्याप्त नहीं होता”, “पैसे के लिए संघर्ष करना पड़ता है”, “जीवन आसान नहीं है”। यह सोच हर निर्णय को एक बड़ा जुआ बना देती है। छोटी-सी गलती का भी डर बना रहता है क्योंकि भीतर से आवाज आती है—“अगर यह गलत हो गया तो मेरे पास और मौका नहीं होगा।” परिणामस्वरूप, हम बेहतर भविष्य की कल्पना ही नहीं कर पाते और अभाव के चक्र में फँस जाते हैं। 👉 जागरूक रहें जब भी आपके मन में पैसे, रिश्...

कबूतर की बीट और आप

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कबूतर की बीट (मल) से कई प्रकार की हानियाँ हो सकती हैं, खासकर अगर वह लंबे समय तक घर, खिड़कियों, छत, बालकनी या अनाज के पास जमा रहती है। मुख्य हानियाँ इस प्रकार हैं – 1. स्वास्थ्य संबंधी हानियाँ फंगल संक्रमण (Histoplasmosis, Cryptococcosis): कबूतर की बीट में पाए जाने वाले कवक (fungus) से फेफड़ों में संक्रमण हो सकता है। बैक्टीरियल संक्रमण (Psittacosis): इससे बुखार, खाँसी, सांस लेने में तकलीफ़ और कमजोरी हो सकती है। एलर्जी और अस्थमा: बीट की धूल हवा में मिलकर श्वसन तंत्र को प्रभावित करती है, जिससे एलर्जी और अस्थमा के रोगियों को परेशानी होती है। परजीवी (Parasites): इसमें कीड़े और परजीवी हो सकते हैं, जो इंसानों और पालतू जानवरों में रोग फैला सकते हैं। 2. पर्यावरण और घर की हानि दीवारों और छत को खराब करना: बीट अम्लीय (acidic) होती है, जो इमारत की पेंट और पत्थर/सीमेंट को खराब कर देती है। गंध और गंदगी: जमा हुई बीट से बदबू और अस्वच्छ वातावरण बनता है। कीट आकर्षित करना: बीट मक्खियों और कीड़ों को आकर्षित करती है। 3. खाद्य और भंडारण पर असर अगर बीट अनाज या खाने-पीने की चीज़ों के पास गिरे तो खाद्य विषाक्तत...

मृत्यु का सत्य - एक भ्रम

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**मृत्यु एक भ्रम है** मृत्यु एक ऐसा विषय है जो सदियों से मानवता के मन में गहन विचार और चिंतन का विषय रहा है। जब हम "मृत्यु एक भ्रम है" कहते हैं, तो इसका अर्थ यह है कि मृत्यु मात्र एक शारीरिक अवस्था का अंत है, न कि चेतना या अस्तित्व का। इस दृष्टिकोण के पीछे कई दार्शनिक, धार्मिक और वैज्ञानिक विचारधाराएँ हैं, जो इस अवधारणा को समर्थन देती हैं। ### 1. दार्शनिक दृष्टिकोण भारतीय दर्शन में, विशेषकर वेदांत और अद्वैत वेदांत में, आत्मा को अजर-अमर माना गया है। उपनिषदों में कहा गया है कि आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है। यह शाश्वत, अजर, अमर और अविनाशी है। मृत्यु केवल शरीर का अंत है, आत्मा का नहीं। शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत में कहा है कि आत्मा ही वास्तविक सत्य है, बाकी सब माया (भ्रम) है। ### 2. धार्मिक दृष्टिकोण हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, और सिख धर्म जैसे धर्मों में पुनर्जन्म की अवधारणा महत्वपूर्ण है। इन धर्मों के अनुसार, आत्मा का अस्तित्व एक शरीर से दूसरे शरीर में यात्रा करता है। मृत्यु केवल एक अवस्था का अंत है, जबकि आत्मा का अस्तित्व निरंतर रहता है। इस प्रकार, मृत्यु ...

निर्विशेष परमात्मा

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क्या परमात्मा निर्विशेष हैं? निर्विशेष का अर्थ है—जिसमें कोई विशेषता, गुण, रूप, आकार या भेदभाव न हो। जब हम परमात्मा को निर्विशेष कहते हैं, तो इसका तात्पर्य यह होता है कि परमात्मा किसी भी सीमित या साकार विशेषता से परे हैं। इसे निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है: --- 1. अद्वैत वेदांत और निर्विशेष ब्रह्म अद्वैत वेदांत में शंकराचार्य ने कहा है कि परमात्मा (ब्रह्म) "निर्विशेष, निराकार, अचल और शुद्ध चैतन्य मात्र" हैं। इसका अर्थ यह है कि वे किसी भी गुण या विशेषता से परे हैं और केवल एक अखंड, अविभाज्य चेतना के रूप में विद्यमान हैं। शास्त्र प्रमाण: > "नेति, नेति" (बृहदारण्यक उपनिषद 2.3.6) – परमात्मा को किसी भी विशेष गुण से परिभाषित नहीं किया जा सकता, इसलिए उपनिषद कहते हैं, "यह नहीं, यह नहीं।" --- 2. परमात्मा रूप, रंग और आकार से परे हैं हम जो भी देख या अनुभव कर सकते हैं, वह सीमित होता है—चाहे वह कोई वस्तु हो, व्यक्ति हो, विचार हो या ऊर्जा हो। परमात्मा किसी भी विशेष रूप में सीमित नहीं होते क्योंकि यदि वे किसी विशेष रूप में होते, तो वे सीमित हो जाते। शंकराचार्य क...