डर और लालच

डर और लालच दोनों ही मनुष्य को मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से बाँधने वाले सबसे शक्तिशाली बंधन हैं। ये बंधन अदृश्य होते हैं, लेकिन जीवन की दिशा और निर्णयों पर गहरा प्रभाव डालते हैं। आइए समझते हैं कि ये कैसे व्यक्ति को बाँधते हैं:
🔒 1. डर (Fear) का बंधन:
🌫️ मन की स्वतंत्रता का हनन:
डर व्यक्ति को अपने सच्चे विचार और भावनाओं को व्यक्त करने से रोकता है। वह यह सोचता है कि "लोग क्या कहेंगे", "अगर असफल हुआ तो?", जिससे उसकी आत्म-अभिव्यक्ति सीमित हो जाती है।
⛓️ सुरक्षा की आड़ में जकड़न:
व्यक्ति अपनी "सुरक्षा" के लिए जोखिम लेने से डरता है। वह जाना-पहचाना दुख सह लेता है, लेकिन अज्ञात सुख की ओर कदम नहीं बढ़ाता।
😰 अतीत और भविष्य में उलझाव:
डर व्यक्ति को वर्तमान में जीने नहीं देता — या तो वह अतीत की गलतियों से ग्रस्त रहता है या भविष्य की चिंता में।
🔗 2. लालच (Greed) का बंधन:
🔄 असीमित इच्छा की चक्रव्यूह:
लालच कभी समाप्त नहीं होता। एक इच्छा पूरी होने पर दूसरी खड़ी हो जाती है। इससे व्यक्ति कभी सन्तुष्ट नहीं हो पाता।
🧲 बाहरी चीजों में फँसा रहना:
लालच व्यक्ति को बाहरी वस्तुओं, धन, प्रतिष्ठा, सुख-सुविधा में बाँध देता है — वह आत्मा से दूर होता चला जाता है।
🧍‍♂️ दूसरों की कीमत पर आगे बढ़ने की प्रवृत्ति:
लालच नैतिकता को कमज़ोर करता है। व्यक्ति खुद के लाभ के लिए दूसरों को हानि पहुँचाने तक को तैयार हो जाता है।
🕊️ उपसंहार: मुक्त होने का मार्ग
डर को देखें, भागें नहीं — awareness से डर का बंधन टूटता है।
लालच की जड़ में जाएं — जानें कि "मैं क्यों चाहता हूँ?" यह आत्मचिंतन बहुत मुक्तिदायक है।
संतोष और विश्वास का अभ्यास करें — जब मन संतुष्ट होता है, लालच और डर दोनों कमज़ोर पड़ते हैं।
➡️ निष्कर्ष:
डर व्यक्ति को उसकी संभावनाओं से वंचित करता है, और लालच उसे उसकी सच्ची आत्मा से दूर करता है। इन दोनों से मुक्त होकर ही जीवन में आंतरिक शांति और वास्तविक स्वतंत्रता संभव है।
सत्य महेश भोपाल ।

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