दुख क्यों और क्या?

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने पूरी मानव जाति को केवल यही सत्य बताया है कि चाहे कितना भी कष्ट आए,दुःख आये,
परंतु मानव को अपने साहस का,धैर्य का,समझ का, विवेक का साथ नहीं छोड़ना है, क्योंकि विवेक,ध्यान,ज्ञान हर मनुष्य को ईश्वर का वरदान है।कोई भी परिस्थिति हो, कोई भी घटना हो हमें अपने भाव, विचार, वाणी को प्रेम,दया, करुणा, सहनशीलता के आधार पर ही अभिव्यक्त करना है।भगवान श्री कृष्ण ने यह भी स्पष्ट किया है कि तुम शरीर नहीं, मन नहीं,विचार नहीं,बुद्धि नहीं,तुम सतचित आनंद हो। तुम सुख, दुख, आवेश,काम, क्रोध लोभ मोह अहंकार भी नहीं हो,तुम इन सब से परे सदानंद हो।
इस को जानो मानो और इसी भाव को जियो। हर चीज को,हर घटना को,हर भाव को,हर विचार को अपने केंद्र पर जाकर सत्य के प्रकाश में जाँचे और नकारात्मक प्रभाव व ऊर्जा से मुक्त हो जायें। गीता में भगवान श्री कृष्ण मानव जाति को केवल यही सत्य बताया है कि किसी भी परिस्थिति में हमें अपने साहस का,समझ का,विवेका साथ नहीं छोड़ना है,क्योंकि विवेक,समझ,साहस हर मानव को ईश्वर का वरदान है ।कोई भी घटना हो हमें अपने मन,विचार, वाणी को सदा दया,करुणा, सहनशीलता के आधार पर ही अभिव्यक्त करना चाहिये।भगवान श्री कृष्ण यह भी स्पष्ट किया है कि तुम शरीर नहीं,मन नहीं,विचार नहीं,बुद्धि नहीं, तुम आनंद हो, तुम सुख-दुख भावेश काम क्रोध लोभ मोह अहंकार भी नहीं हूं भी नहीं हो तुम सब से परे सदानंद हो इसको जानों मानों ऑफ इसी भावों को कि वो हर चीज को हर घटना को हर भाव को हर विचार को अपने केंद्र पर जाकर उस की विवेचना करो कि है क्या है क्यों कैसे कहां पर हो

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