बच्चे मन के सच्चे

गर्भस्थ शिशु को चेतना

 "क्या गर्भ में पल रहे बच्चे को या दूध पीने वाले बच्चे को भी ज्ञान दिया जा सकता है" 

बच्चा जितना छोटा होता है उसमें किसी भी माध्यम से विचारों को ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है। जब बच्चा मां के पेट में होता है तो मां का रोम-रोम उसकी आंख नाक कान होते हैं, उसका मस्तिष्क होते हैं। उसके देखने सुनने व समझने की शक्ति हजारो लाखो गुना होती है, इसलिए बच्चा मां के पेट में कहीं अधिक जल्दी सीख और समझ सकता है। जिस कार्य को सीखने के लिए  सालों या महीने लगते हैं,वह कार्य बच्चा गर्भ में घंटों में सीख सकता है। यही वह समझ थी जिस का प्रयोगिक रूप भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को सिखाया और अर्जुन ने उसका प्रयोग अपनी पत्नी पर किया। जब वह गर्भवती थी, अभिमन्यु उसके गर्भ में था  अभिमन्यु ने चक्रव्यूह तोड़ने का ज्ञान गर्भ में ही प्राप्त किया था।

यदि कोई गर्भवती स्त्री चाहती है कि वह किसी विशेष बच्चे को जन्म दे। जैसे  वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, नेता, अभिनेता या ऋषि-मुनि। 
मानो वह एक श्रेष्ठ क्रिकेट खिलाड़ी को जन्म देना चाहती है, तो गर्भ के दौरान माता को चाहिए कि उसकी सभी क्रियाएं पढ़ना-लिखना tv देखना सभी क्रिकेट से संबंधित हो,  सोचना विचारना बातें करना सब कुछ क्रिकेट खेल की ही हो और यह सब वह पूरी रुचि के साथ करें। जैसे एक इंजीनियर कुछ बनाने के लिए अपनी संपूर्ण योग्यता का प्रयोग करता है, ऐसे ही अपनी इच्छा अनुसार योग्यताओं से परिपूर्ण बच्चा प्राप्त करना भी सही विचार की प्रयोगिक क्रिया है।
 पांचों इंद्रियों से प्राप्त जानकारी के आधार पर मस्तिष्क में विचार चलते हैं और विचारों के आधार पर मस्तिष्क बायोकेमिकल बनाता है। इन बायो केमिकल का रस बच्चे का भोजन होता है और मस्तिष्क में चलने वाले विचार उसका ज्ञान ।
एक बार एक लडका जो शारीरिक रूप से विकलांग था उसकी मानसिक समस्या यह थी कि यदि कोई उसके बिस्तर पर आकर बैठ जाए तो वह बहुत अधिक डर और सहम जाता था बेकारण ही अक्सर वह रोने लगता था। एक दिन काउंसलिंग के समय उसकी मां को बताया गया कि यदि गर्भ के समय माता हर समय कुंठित डरी-सहमी या क्रोधित रहती है तो बच्चा भी जन्म के बाद ऐसी भावनाओं से प्रभावित रहेगा। यह बात जैसे ही पूरी हुई उसकी मां ने बड़ी दुख भरी आवाज में रोते हुए कहा कि इसका मतलब मैं ही दोषी हूं अपने बेटे की ऐसी अवस्था के लिए।आप ठीक कहते हैं जब तक यह मेरे पेट में रहा पूरे 9 महीने मेरे डर से भरे व रो रो कर निकले मेरी सास मुझ पर बहुत अत्याचार करती थी मुझे मारती पीटती रहती थी। 
जैसे भारी डर की अवस्था में कोई कलाकार जब मूर्ति बनाता है तो वह अपनी योग्यता का पूर्ण प्रयोग नहीं कर पाएगा। वैसे ही गर्भ में पल रहे बच्चे का निर्माता अंतर्मन  होता है डर की अवस्था में निर्माण कार्य में बाधा उत्पन्न होने से बच्चों में विकृति आ सकती है इसी कारण से डॉक्टर गर्भावस्था में खुश रहने की सलाह देते हैं।

नोट:- जब गर्भ में बच्चा 3 महीने का हो जाए तो मां बच्चे को संदेश दे सकती है शांतचित्त से मां 15 से 20 मिनट लेट जाए या सुखासन में बैठ जाएं जब मन के विचार शांत हो जाए तो धीरे-धीरे अपना ध्यान गर्भस्थ शिशु पर ले जाए आंखें बंद कर ले और कल्पना करें कि तुम उसे देख रहे हो और वह भी तुम्हें देख वह सुन रहा है मातृत्व के प्रेम में खो जाए जैसे ही मां इतनी गहरी भावनाओं में खो जाएंगी उसका मानसिक व आत्मिक लिंक गर्भस्थ शिशु से हो जाएगा अब मौखिक या मानसिक निर्देश मां उसे देगी वह स्वीकार करेगा मां उसे उच्च कोटि के विचार दें जैसे तुम सभी  श्रेष्ठ गुण और योग्यताओं से संपन्न हो अवश्य तुम श्रेष्ठ और महान बनोगे तुम अपने माता पिता और अपने देश का नाम रोशन करोगे आदि उच्च विचार दे
जब मां बच्चे को स्तन से दूध पिलाती है तो स्वयं वह एक ध्यान की अवस्था में चली जाती है उस अवस्था में वह ऐसे ही विचारों को धीरे-धीरे बुदबुदाकर शिशु को निर्देश दे सकती है।

 गौर करने वाली बात यह है  महिलाएं केवल और केवल उसी अवस्था में गर्भ धारण करें जब उन्हें इस बात की निश्चिता हो कि उन्हें अपने शिशु के लिए एक अच्छा माहौल प्राप्त हो सकता है  और अगर वह डिप्रेशन में हैं तो पहले डिप्रेशन का इलाज करवाएं अगर वह किसी तरह की मानसिक व शारीरिक पीड़ा से ग्रसित है तो उसमें डॉक्टर और हीलर्स की सलाह ले करके ही आगे बढ़े । 
        संतानोत्पत्ति एक यज्ञ के समान है । एक पुरुष का यह कर्तव्य है कि अपनी पत्नी के गर्भ धारण करने से पहले यह सुनिश्चित करे कि घर का माहौल उनके लिए उपयुक्त है या नहीं क्योंकि 9 माह की अवस्था तक पूरी तरह से उन्हें एक शांत सुंदर और भरपूर खुशियों से भरा हुआ माहौल मिलना जरूरी है । ताकि आप जिस भविष्य का निर्माण करने जा रहे हैं वह भविष्य उसी प्रकार का हो जिस प्रकार का आप चाहते हैं इसके लिए पति-पत्नी दोनों को ही पूरी तरह से इस बात का ख्याल रखना होगा कि जिस वक्त गर्भधारण होता है उस वक्त गर्भस्थ शिशु  आपके सभी कर्मों को, आपकी सोच को , आपकी जीवनशैली को , आपके खान-पान को और आपकी आदतों को सहज ही धारण करने लग जाता है । यह सारी की सारी बातें उसके अंदर एक प्रोग्रामिंग बन कर फिट हो जाती हैं जो आने वाले समय में उसके भविष्य और कर्मों में दिखाई देता है । इसलिए कहा गया है कि इस 9 माह के समय में आप एक निर्माण अवस्था में होते हैं जिस वक्त आप कुछ निर्माण कर रहे हैं और उस निर्माण को श्रेष्ठ बनाने के लिए आपको चाहिए कि आप पूरी तरह से इस यज्ञ में सबसे अच्छी आहुती डालें उसमें केवल अच्छे कर्मों का प्रवेश करवाएं  ताकि उस बच्चे का निर्माण श्रेष्ठता की अवस्था में हो और जिस महिला ने गर्भधारण किया है  उसको इस 9 माह की अवधि तक किसी भी तरह से परेशान न किया जाए । महिला को पूरी तरह से एक अच्छा माहौल मिले एक डेवलपिंग माहौल मिले एक इनकरेजिंग माहौल मिले मोटिवेशनल माहौल मिले ना कि डिप्रेशन , जबरदस्ती,  थकान या डर जैसी स्थितियां हों ।

🌟साइकोलॉजी के सिद्धांत यूनिवर्सल ट्रुथ है इन सिद्धांतों को अपनाकर इंसान सहजता से इनका लाभ प्राप्त कर सकता है।

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