मानव,आत्मा, परमात्मा

जीवन क्या हैं? क्यों है? कैसा है? मैं कौन हूं?क्या यह सब जानने वाला मैं हूँ?पर यह जानने वाला कैसे जाना जा सकता है?इस सँसार में सब कुछ मन के कारण अनुभव होता है।पर मन के आधार को मन द्वारा नहीं जाना जा सकता। पर यह समझ सकते हैं कि एक आधार है मन का।आधार से ही सब कुछ प्रकट हो रहा है,अनुभव होता है और इसका कोई अर्थ नहीं है।अर्थात यह सब माया है,भ्रम है।उसे ध्यान देना या ऊर्जा देना भी व्यक्ति को उसी माया  में उलझा कर रखता है। तो फिर क्या करें?कुछ नहीं करें बस सजग रहें और सब कुछ होते हुए देखें जानें। देखें पर नहीं देखें,सुनें पर नहीं सुनें, स्वाद लें पर आसक्त न हों।सब कुछ होते हुए ऐसा जानें कि अनंत नाटक चल रहा है ।प्रतिक्रिया, निर्णय व दोषारोपण से बचें,यह मानव को माया में डूबा देते हैं। ईश्वर हमारे साथ हर समय हैं। ईश्वर की कृपा के अनुभव में सदा रहें। सत्य,प्रेम,आनंद,साहस,सजगता आदि सदगुणों की अभिव्यकि करते रहें। सबको क्षमा करें। धन्यवाद

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