औषधि विहीन उपचार

औषधविहीन उपचार-एक शाश्वत विज्ञान

अर्थात् समस्त चिकित्सानाम् त्वम् हस्ते

उपचार का अन्तर्निष्ट गुण स्वयं मनुष्य के स्वत्व में स्थित है। -लेखक समस्त चिकित्सानाम् त्वम् हस्ते" ईश्वर की महानता का द्योतक है। प्रत्येक मानव को जन्म से ही यह अनुपम वरदान प्राप्त है। परन्तु अज्ञानतावश हम इसका उपयोग नहीं करते हैं।

आज संसार में अनगिनत चिकित्सा विधायें है। यदि हम किसी भी चिकित्सा विधि का अध्ययन करते हैं, तो हमारा परिचय विभिन्न रोगों से तथा उनके उपचार हेतु अनेको औषधियों व किन्हीं विशेष प्रक्रियाओं से होता है। किन्तु किसी भी चिकित्सा शास्त्र अथवा प्रक्रिया में रोगी द्वारा वर्णित कारणोपचार पर कोई दिशा निर्देश नहीं है। समस्त चिकित्सा विधान और चिकित्सकगण अपने अनुभवों को ही महत्व देते है। कारण उनके लिये अर्थहीन है।

एक यक्ष प्रश्न है? रोग व रोग के कारण में उपचार किस का किया जाना चाहिये ?

स्वाभाविक है, रोग के कारण का उपचार ही सर्वोपरि है।

आज समस्त विश्व औषधियों की भारी कमी से जूझ रहा है। जीवन रक्षक औषधियों की आपूर्ति न्यून है, तथा अन्य आवश्यक औषधियाँ या तो अप्रचलित हो गई हैं या अत्यधिक मूल्यवान और जन सामान्य की पहुंच के बाहर है। इस परिस्थिति में डॉ० भाल की औषध-विहीन शाश्वत चिकित्सा मानव के कष्ट एवं रोग निवारण हेतु एक अमोघ अस्त्र के रूप में है जिसका वार कभी निष्फल नहीं होता है।

इस चिकित्सा की मूल अवधारणा कारणोपचार की है, जिसके प्रति समस्त चिकित्सा विधिया मौन हैं। फिर भी यदि किसी रोग में कोई औषध ही इंगित हो, तो इस विधि द्वारा वह औषध क्षण मात्र में आपको उपलब्ध हो जाती है। साथ ही, इस विधि की यह भी विशेषता है कि यदि वह औषध वास्तव में लाभकारी है, तो तत्काल प्रभाव से अपने कष्ट में एक विश्रांति का अनुभव प्राप्त होना प्रारंभ हो जाता है।
     किसी औषध को उसकी अभौतिक अवस्था में किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है, इस पर प्रकाश डालना उचित प्रतीत होता है। हम सब इस तथ्य से भली भांति परिचित हैं कि संसार के समस्त पदार्थ, जीव हो अथवा निर्जीव,उर्जा हैं व निरंतर प्रकंपन-विकंपन में रत हैं। अतः इनके द्वारा उत्पन्न विकिरणों के प्रति प्रत्येक वस्तु व मनुष्य अत्यंत संवेदनशील होता है। इस आधार पर यदि कोई वस्तु या विचार किसी कागज, वस्त्र अथवा भोजपत्र आदि पर उत्कीर्ण कर लिया जाय तो उसमें भी अन्य पदार्थों की तरह प्रलंपन-विकंपन की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है और उनसे उत्पन्न होने वाले विकिरणों से सम्पर्क होने पर मनुष्य उस के प्रभाव का स्पष्ट अनुभव करता है।
इस प्रकार औषध, कारण अथवा किसी अन्य विधि द्वारा औषध निर्माण की प्रक्रिया अत्यंत सरल व सहज हो जाती है। कारण, औषध या विधि का नाम किसी कागज पर उसकी निर्धारित शक्ति सहित लिख लें।बस आपकी औषध अस्तित्व में आ गई। अपनी सुविधानुसार उसे अपने दक्षिण अथवा वाम हस्त में पकड़ लें। उपचार तत्क्षण प्रारम्भ हो जाता है, जिस तरह एक बटन दबाते ही विद्युत बल्ब जल उठता है।

यदि किसी औषध का मौखिक उपयोग करना चाहते हैं, तो औषध या कारण की पर्ची को एक रिक्त शीशी पर चिपका दें और उसमें अपनी पसंद अनुसार मिश्री की डली, होम्योपैथी की गोली या किशमिश, चिलगोजा, पिस्ता आदि भर लें आप की औषध तैयार है। इसके उपयोग की विधि थोड़ा अलग है। जब प्रथम बार आप इसका उपयोग करते हैं तो पांच-पांच मिनट पर लेना होगा। जिस खुराक से आपको औषध की क्रियाशीलता का अनुभव होने लगे, औषध के अंतराल को बढ़ाते जाना होगा। आवश्यकतानुसार प्रथम दिन किसी औषध का उपयोग 6 से 12 बार या इससे भी अधिक हो सकता है। दूसरे दिन यह घट कर 2 से 6 बार तक हो सकता है। दवा कितनी बार ली जाय इसका निर्धारण आपको अपने शरीर की ग्राह्यशीलता के आधार पर करना चाहिये।

अब कारण औषध का चुनाव किस प्रकार किया जाना चाहिये ? कुछ दृष्टांतों द्वारा इसे स्पष्ट करने का प्रयत्न किया जा रहा है: 1.सर्विकल स्पॉन्डिलाइटिस एक अधेड़ व्यक्ति को स्कूटर चलाते समय गर्दन में दर्द होने
लगता था। "स्कूटर जर्क्स इफेक्ट्स 200" देने से उसे इस कष्ट से छुटकारा मिल गया।

2.साढ़े छ: वर्ष के एक बच्चे को, जब वह 6 माह का था, तब से उसके पूरे शरीर में खसरा
सरीखे लाल दाने थे। उसका जन्म शल्य क्रिया द्वारा हुआ था। "बर्थ शॉक 200'' से उसके सभी दाने लगभग 6 माह में समाप्त हो गये।

3. 55 वर्ष के एक व्यक्ति को रक्त चाप की शिकायत थी। उसकी चिकित्सक बनने की इच्छा पूर्ण नहीं हो सकी। " एस्पिरेशनल शॉक 200" दी गई। 15-20 मिनट में उसकी नाड़ी गति 58 प्रति मिनट हो गई थी। 3 दिन पश्चात् 65 प्रति मिनट थी और एक सप्ताह उपरान्त 75 प्रति मिनट पाई गई, जिसे उसकी आयु के आधार पर सामान्य माना जायगा।
4.डाइबिटिक रेटिनोपैथी - "डाइबिटीज 10m" दिन में 6 बार लेने पर एक व्यक्ति की डाइबिटिक रेटिनोपैथी डेढ़ से दो माह में ठीक हो गई। (M=1000)
5. एक महिला मजदूर मिट्टी खोदने का कार्य करती थी जिसे वह छोड़ चुकी थी, किन्तु उसकी दायी बाह में निरंतर दर्द बना रहता था। ''मिट्टी खोदने से दाहिने हाथ में दर्द 200'' दिया गया। 15 मिनट में उसके हाथ का दर्द समाप्त हो गया।
6.14 वर्ष की एक लड़की 3 नारी प्रेतात्माओं से पीड़ित थी। उसे" लिबरेट फ्रॉम पास्ट लाइफ एन्टिटीज़" व " डिवाइन प्रोटेक्शन" दोनों 100M शक्ति में दिये गये। लगभग 4 घंटों में वह तीनों नारी प्रेतात्माओं से मुक्त हो गई। जहां (M = 10,000,00) 
उपरोक्त दृष्टांतों से स्पष्ट हो जाता है कि जहां औषधिया निष्फल हो जाती है, वहां अनौषधीय उपचार एक चमत्कार है।
यथार्थ यही है कि कारणोपचार ही उत्तम है, यदि कभी रोगों के कारणों की खोज की जाती है, तो सम्पूर्ण विश्व यह जान कर आश्चर्यचकित रह जायगा कि किसी भी रोग का उद्गम चोट से ही है। अतः हमें अपनी समस्त चोटों का उपचार उसी प्रकार करना चाहिये जिस प्रकार उन चोटों ने हमारे शरीर को क्षति पहुंचाई है।

अब मैं अधिक विस्तार में न जा कर कुछ कारण उपाय जन सामान्य के उपयोग हेतु प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिनसे आप सभी अपने जीवन में दिन प्रति दिन होने वाले कष्टों से मुक्ति पा सकेंगे। 
1. "बर्थ शॉक 200"किसी भी रोग अथवा कष्ट में जो जन्म से हो। विशेष कर दमा जो जन्मजात माना गया है।
2. "बोन 200" अस्थियों में दर्द। यदि अस्थि का नाम लिख कर दिया जाता है, तो और अच्छा लाभ मिलेगा।
3."मसल 200" मसल में दर्द अथवा ऐंठन। यदि मसल का नाम लिख कर उपयोग किया जाय तो और अधिक लाभकारी होगा। 
4."ऐंडक्रिन इंटेग्रिटी 10m" अंत: स्रावी ग्रंथियों की अकर्मण्यता अथवा सक्रियता में इसका उपयोग लाभकारी है।
5."स्पाइनल इंटेग्रिटी 10m" मेरूदंड को सुदृढ़ करता है। स्लिप्ड डिस्क से उत्पन्न कष्टों में भी आराम मिलता है।
6.स्वरक्त 3X - ज्वर इयोसिन बाहुल्य रक्त, मधुमेह आदि जहां रक्त सम्बन्धी विकृति
परिलक्षित हो। यदि बुखार जटिल हो तो स्वरक्त 3X के साथ स्वमूत्र 3x पर्याय क्रम लेने से ज्वर सहज उतर जाता है।
7. स्वमूत्र 3X बदन दर्द, सर दर्द, एलर्जी आदि जहां मूत्र परीक्षण में कोई विकृति स्पष्ट इंगित हो। 
8. "सप्त धातु संतुलन 10m" कंधों, कूल्हों व कमर में दर्द या रक्त, मज्जा, वसा, मांस, अस्थि, मेद, शुक्र (रज) से सम्बन्धित विसंगतियाँ। 
9. ब्रेन 2 200 मानसिक रूप से अविकसित बच्चे या जिनकी स्मृति शिथिल हो, इर. औषध को लेने से अपनी कक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने लगते हैं। साथ में यदि बर्थ शॉक 200 भी दिया जाय तो परिणाम और अधिक अच्छे मिलेंगे।
10.ETC GW TCAST ICCAC WSWN IITT EAN 200- जुकाम, खाँसी की सर्वोत्तम औषध है। 
11.नेट्रम सल्फ 3X पेट की किसी भी शिकायत के लिये रामबाण है; जैसे दस्त, कब्ज, गैस जलन आदि। मधुमेह की यह अत्युत्तम औषध है।
12. दर्द निवारक प्राणायाम वाइब्रेशनल इफेक्ट्स 1m -- यह दर्द दूर करने का अच्छा विकल्प है। यदि स्थान विशेष का नाम लिख कर लिया जाय तो और अच्छा लाभ मिलता है।
13.पाइल्स 3X बबासीर की उत्तम औषध है। 14.(शल्य क्रिया का नाम) आफ्टर इफेक्ट्स 200 कोई भी व्यक्ति, जिसकी शल्य क्रिया की जा चुकी हो और उसे कष्ट से मुक्ति न मिल पा रही हो। यह उसके लिये अमृत समान है। 
15.BHT ATIC TPS ART OAE OATPI 200 -- यह चोट की सर्वकालिक औषध है। कष्ट कोई भी क्यों न हो, इसको लेने से लाभ अवश्यंभावी है। कैंसर आदि जटिल रोगों में इसे शरीर पर 8 घंटे से लेकर 16 घंटे तक धारण किया जा सकता है। आनंद ही प्राप्त होगा। 

उपरोक्त विवरण कारण चिकित्सा की मूल अवधारणा को समझने में सहायक सिद्ध होगा। परन्तु यदि किसी औषध, विधि या कोई उपकरण द्वारा उपचार किसी कष्ट विशेष में लाभदायक प्रतीत होता है, तो आप उस औषध विधि, या उपकरण द्वारा उपचार की प्रक्रिया को उसकी उपयुक्त शक्ति में लिख कर, जिस प्रकार कारण औषध को हाथ में पकड़तें हैं, पकड़ लें। यदि वह आपके कष्ट के लिये वास्तव में लाभप्रद है, तो 5 से 10 मिनट में लाभ अवश्य मिलना प्रारम्भ हो जाना चाहिये। अन्यथा निश्चय है कि वह लाभकारी नहीं है। भले ही भौतिक कार्यशीलता से क्षणिक लाभ मिल रहा हो। अतः उस औषध, विधि या उपकरण द्वारा उपचार का परित्याग करना श्रेयस्कर होगा। विनम्र निवेदन।



प्रवर्तक-स्व.डॉ० महेन्द्र प्रताप सिंह भाल।
निवेदन-महेश सेठ, भोपाल।

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