कुंएँ का मेंढक और समुद्र की मछली|

कुंएँ का मेंढक और समुद्र की मछली|
एक कुँए मे एक मेंढक रहता था,
उसका वही सँसार था।
उसने
आकाश भी उतना ही देखा था,

जितना कुएँ के अंदर से दिखाई देता है,
इसलिए उसकी सोच की सीमा कुएँ तक ही सीमित थी।
एक दिन नीचे पानी के रास्ते से कुंएँ में समुद्र की एक छोटी सी मछली आ पहुंची।जब उन दोनों की बातचीत हुई ।
मछली ने पूछा कि तुम्हे पता है समुद्र कितना बड़ा होता है ?
मेंढक ने एक छलांग लगाई बोला
इतना होगा।
मछली बोली -नही,
इससे बहुत बड़ा है।
मेंढक ने फिर एक किनारे से आधे हिस्से तक छलांग लगाई।फिर बोला इतना होगा।
फिर मछली बोली कि नहीं।
इस बार मेंढक ने अपना पूरा जोर लगाते हुए एक सिरे से
दूसरे सिरे तक छलांग लगाई और बोला कि
इससे बड़ा हो ही नही सकता,
मछली बोली नही समुद्र इससे बहुत बड़ा है ।
मेंढक को विश्वास ही नही हुआ,
उसको लगा कि मछली झूठ बोल रही है।
दोनों ही अपनी अपनी जगह सही थे।अंतर था तो उनकी सोच में
मछली की सोच अपने माहौल के हिसाब से थी और मेंढक की
 सोच भी जिस वातावरण में वो रहता था, ठीक वैसी ही थी।मित्रों,
हमारे जीवन में भी तो यही होता है।
जिस वातावरण, स्थिति में हम रहते है, हमको लगता है,यही जीवन की सच्चाई है, लेकिन हम कितने गलत होते है,यह अहंकारवश हम जान भी नहीं पाते हैं।
जब तक कोई घटना न हो।जीवन में अपने बनाये विचारों की जेल से निकलने के लिए आपको नये, सकारात्मक विचारों के द्वारा हमे अपनी सोच की सीमा को बढ़ाना होगा और मछली की कथा से कुछ सीखना होगा।

अगर ये सीख हम जीवन मे उतारते है तो हमारी सोच का विस्तार होने के साथ साथ
हम भी आगे बढ़ेंगे।
आपका मङ्गल हो।
क्या आपको ये कहानी अच्छी लगी?

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