चुप साधना

!! एक प्रयोग !!

_चौबीस घंटे में थोड़ा समय निकालो!शुरु-शुरु में उदासी लगेगी, लगने देना..पुराना अभ्यास है! शुरु-शुरु में परेशानी लगेगी, लगने देना।_

_लेकिन एक घड़ी चौबीस घंटे में चुपचाप बैठ जाओ,_
_न कुछ करो,_
_न कुछ गुनो,_
_न माला फेरो,_
_न मंत्र जपो,_
_न प्रार्थना करो_
_कुछ भी न करो,_
_चुपचाप!_

_हाँ, फिर भी विचार चलेंगे, चलने दो। देखते रहना निरपेक्ष भाव से, जैसे कोई राह चलते लोगों को देखता है, कि आकाश में उड़ती बदलियों को देखता है।_

_निष्प्रयोजन देखते रहना, तटस्थ देखते रहना बिना किसी सभी लगाव के, बिना निर्णय के, न अच्छा, न बुरा; चुपचाप देखते रहना।_

_गुजरने देना विचारों को; आएँ तो आएँ, न आएँ तो न आएँ। न उत्सुकता लेना आने में, न उत्सुकता लेना जाने में। _और तब धीरे-धीरे एक दिन वह घड़ी आएगी कि विचार विदा हो गए होंगे,_ सन्नाटा रह जाएगा सन्नाटा पहली _दफा आता है तो जैसे बिजली का धक्का लगे,ऐसा रोआँ-रोआँ कंप जाएगा क्योंकि तुम प्रवेश करने लगे फिर उस अंतर-अवस्था में, जहाँ गर्भ के दिनों में थे।_

_यह गहरा झटका लगेगा तुम्हारा संबंध टूटने लगा संसार से, तुम्हारा संबंध छिन्न-भिन्न होने लगा भीड़-भाड़ से; तुम संबंधों के पार उठने लगेझटका तो भारी लगेगा!जैसे हवाई जहाज उठेगा जब पहली दफा पृथ्वी से तो जोर का झटका लगेगा, ऐसा ही झटका लगेगा! घबड़ाना मत!_

_एक बार पंख खुल गए आकाश में, एक बार उड़ चले, तो अपूर्व अनुभव है, अपूर्व आनंद है!फिर एकांत कभी दुःख न देगा। एकांत तो क्या, फिर भीड़ भी दुःख न देगी क्योंकि तब भीड़ में भी एकांत बना रहता है।_

_जिसको भीतर_
_सधने की कला आ गई,_
_वह बीच बाजार में_
_खड़े होकर भी_
_ध्यान में हो सकता है।_
_दुकान पर बैठे-बैठे,_
_काम करते-करते,_
_और भीतर_
_धुन बजती रहेगी_
_निस-बासर!_
_रात-दिन!_
_नींद में भी उसकी धुन_
_बजती रहेगी।_

!! ओशो !!

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