Satya Reiki and Spirituality: अद्वितीय रचनाकार: आप ही रचनाकार हैं। आप के औज़ार- प्रेम,धैर्य,शांति,कल्पना या धारणा की शक्ति,विचार शक्ति,भाव शक्ति,वेदना शक्ति,अनुभव की शक्ति,निर्णय लेने की ...
आत्मनिष्ठ होना क्या होता है? आत्मनिष्ठ होने का अर्थ है अपने स्वयं के अनुभव, विचार, और सत्य की खोज में केंद्रित रहना। इसका तात्पर्य बाहरी प्रभावों, समाज की मान्यताओं या अन्य लोगों की अपेक्षाओं से प्रभावित हुए बिना अपनी स्वयं की आंतरिक अनुभूति और समझ के आधार पर जीवन जीना है। यह आत्मसाक्षात्कार की ओर बढ़ने का एक चरण भी हो सकता है, जहाँ व्यक्ति बाहरी सत्य के बजाय अपने भीतर के सत्य को पहचानने और अनुभव करने का प्रयास करता है। आत्मनिष्ठ व्यक्ति अपने विचारों, भावनाओं और क्रियाओं के प्रति सजग होता है और उन्हें बाहरी मानकों से नहीं, बल्कि अपनी आंतरिक बुद्धि, आत्म-निरीक्षण और अनुभव के आधार पर परखता है। ध्यान और आत्म-निरीक्षण की साधना आत्मनिष्ठ बनने में सहायक होती है, क्योंकि इससे व्यक्ति अपने मन, विचारों और वास्तविक स्वरूप को अधिक गहराई से समझ सकता है। आत्मनिष्ठ कैसे बनें? आत्मनिष्ठ होने के लिए व्यक्ति को अपने भीतर की गहराइयों में उतरना होता है और बाहरी प्रभावों से स्वतंत्र होकर स्वयं को पहचानना होता है। यह एक सतत अभ्यास है जिसमें ध्यान, आत्म-निरीक्षण और आंतरिक सजगता की आवश्यकता होती ...
गुंजन योग, जिसे "नाद योग" भी कहा जाता है, ध्वनि और कंपन पर आधारित एक योग विधि है। इसके लाभ निम्नलिखित हो सकते हैं: 1. **मानसिक शांति**: ध्वनि और कंपन के माध्यम से मन को शांत करने में मदद करता है। 2. **ध्यान में सुधार**: ध्यान की अवस्था को गहरा करने में सहायक होता है। 3. **तनाव में कमी**: नियमित अभ्यास से तनाव और चिंता कम हो सकती है। 4. **आंतरिक संतुलन**: शरीर और मन के बीच संतुलन स्थापित करने में मदद करता है। 5. **चक्र जागरण**: शरीर के चक्रों को जागृत करने में सहायक होता है। 6. **आध्यात्मिक विकास**: आत्म-ज्ञान और आध्यात्मिक विकास में सहायता करता है। ये लाभ व्यक्ति विशेष के अनुभव और अभ्यास की गहनता पर निर्भर कर सकते हैं। गुंजन योग करने के लिए निम्नलिखित विधियों का पालन किया जा सकता है: 1. **शांत और आरामदायक स्थान चुनें**: एक ऐसा स्थान चुनें जहां आप बिना किसी व्यवधान के बैठ सकें। 2. **आरामदायक स्थिति में बैठें**: सुखासन (क्रॉस-लेग्ड पोज़) या पद्मासन (लोटस पोज़) में बैठें। रीढ़ को सीधा रखें और हाथों को घुटनों पर रखें। 3. **साँसों पर ध्यान केंद्रित करें**: कुछ गहरी साँ...
जीवन चक्र: जन्म से मृत्यु तक – एक सफल मानवीय यात्रा प्रस्तावना जीवन एक निरंतर प्रवाह है – जन्म से लेकर मृत्यु तक। यह केवल शारीरिक परिवर्तन नहीं, बल्कि आत्मिक और मानसिक विकास की यात्रा भी है। एक सफल जीवन वही कहलाता है जिसमें मानव अपनी संभावनाओं को पहचाने, कर्तव्यपथ पर चले, और अंततः संतोष व शांति की स्थिति में पहुँचे। इस लेख में हम जानेंगे कि जीवन के विभिन्न चरणों में क्या करना चाहिए ताकि यह यात्रा सार्थक, सफल और आत्मिक दृष्टि से समृद्ध हो। 1. बाल्यावस्था (0 से 12 वर्ष) – नींव की अवस्था विकास का समय : यह समय शारीरिक, मानसिक व नैतिक आधार डालने का होता है। अभिभावकों की भूमिका : इस अवस्था में बच्चे के मन में संस्कारों का बीजारोपण करना चाहिए – जैसे कि सत्य, करुणा, अनुशासन, श्रम और आत्मविश्वास। खेल और शिक्षा : खेल के माध्यम से स्वास्थ्य और अध्ययन के माध्यम से विचारशीलता का विकास करें। मंत्र : "जैसा बीज बोओगे, वैसा ही वृक्ष पाओगे।" 2. किशोरावस्था (13 से 19 वर्ष) – दिशा निर्धारण की अवस्था आत्म-साक्षात्कार का प्रारंभ : यह काल आत्म-पहचान का होता है। युवा अपने भ...
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